When Modi took power in 2014, there was unprecedented progress in government and sick companies. Crude oil producing companies ONGC and others also made profits today.
Now the question will arise that when all the government institutions are progressing, then what is the problem in this? Is this a good thing? But this was one aspect of the picture. The second one was behind the curtain.
If the benefits of the progress of government institutions had gone to the public, it would have been considered a good step. Just as petroleum companies are in profit, is the public getting any relief in gas cylinders and diesel petrol? No ?
But tomorrow these profitable companies will gradually be handed over to their friends at throwaway prices? This is called asafoetida or alum and the color should also be bright.
Modi has done just this by working 18-18 hours a day in the last 10 years. The public is crazy with happiness that whatever is happening, Modi is doing it for them?
Arrangements were made to ensure that the public does not get loans from banks, but there is no shortage of loans to friends. Today SBI Bank has given a huge loan to Adani Group, LIC blindly bought Adani shares? On whose instructions? And the friend's lump sum loan was also waived off? On whose instructions?
When Modi is trying so hard, why won't Adani again become the number one person in Asia?
If Adani's wealth increases further tomorrow, the government will boast of the country's third economy. This drama will be played by giving 80 to 90 percent of the total wealth of the country to one person. Not only this, the public will also be dancing happily in this spectacle, because they will be holding bags of two and a half kilo grains each, printed on Modi's posters, in both their hands.
हिन्दी रुपांतरण
2014 में जब मोदी ने सत्ता संभाली, तो सरकारी व बीमारु कंपनियों में अप्रत्याशित रूप से प्रोग्रेस हुई। कच्चे तेल उत्पादन वाली कंपनियां ONGC व अन्य भी आज फायदे में आई।
अब प्रश्न उठेगा, कि जब सभी सरकारी संस्थाओं में उन्नति हो रही है, तो इसमें दिक्कत क्या है ? ये तो अच्छी बात है ? पर ये तस्वीर का एक रुख़ था। दूसरा तो परदे के पीछे था।
सरकारी संस्थानों की उन्नति का लाभ यदि जनता में जाता, तो यह अच्छा कदम माना जाता । जैसे पेट्रोलियम कंपनियां फायदे में है, तो क्या जनता को गैस सिलेंडर व डीजल पेट्रोल में कोई राहत मिल रही है ? नहीं न ?
पर कल ये फायदे वाली कंपनियां धीरे-धीरे अपने मित्र को औने-पौने दामों में सुपुर्द कर दी जाये ? इसी को कहते है कि हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा होये।
मोदी ने पिछले 10 सालों में 18-18 घंटे काम करके बस यहीं किया है। जनता इसी खुशी में पागल है, कि यह सब कुछ जो हो रहा है, वह सभी मोदी उनके लिए कर रहे है ?
बैंकों से एक बार जनता को कर्ज न मिलें, पर दोस्त के कर्जे में कोई कमी न रहे, इसका इंतजाम किया गया। SBI बैंक आज बहुत बड़ा कर्जा अडानी समूह को देकर बैठा है, LIC ने अडानी के शेयरों को आंख मूंदकर खरीदा ? किसके इशारे पर ? और दोस्त के एकमुश्त कर्जे को माफ भी किया गया ? किसके इशारे पर ?
जब मोदी इतना ऐड़ी चोटी का जोर लगाये हुए है, तो अडानी फिर से एशिया का नंबर वन रहीस व्यक्ति क्यों न बनेगा ?
कल अडानी की अमीरी और बढ़ेगी, तो सरकार द्वारा देश की तीसरी अर्थव्यवस्था का ढिंढोरा पीटा जायेगा। देश की कुल संपत्ति का 80 से 90 प्रतिशत एक व्यक्ति को देकर यह तमाशा खेला जायेगा। यहीं नहीं, इस तमाशे में जनता भी खुश होकर नाच रही होगी, क्योंकि उसके दोनों हाथों में ढाई-ढाई किलो अनाज के मोदी के पोस्टर छपे थैले जो होगें।
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