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राहुल की परेशानी। (Rahul's problem)


 A big question has arisen before Rahul Gandhi, which of the two seats won by MPs should he leave?


The decision is really very difficult. Because the people of Wayanad Lok Sabha seat supported Rahul at a time when along with Modi wave, the issue of nationalism was also dominating the people.


In those circumstances, it becomes very important for the people to make Rahul win. Rae Bareli seat has been considered as the stronghold of Gandhi family, and from the beginning, Gandhi family has also had an emotional relationship with this seat.


So the question arises, which seat should he leave? One seat will have to be left. Many people are speculating, especially the news that is filtering in from media sources, that Rahul may leave Rae Bareli seat. And from there Priyanka Gandhi can start her innings as an MP for the first time.


But I believe that even though Rahul Gandhi has been given immense love by the people of Wayanad, Rahul Gandhi should not take any chance.  Instead of getting carried away by emotions, he should give up the "Wayanad" seat.


The reason is very clear, Wayanad seat is a very safe seat for Congress, on which Priyanka Gandhi can be easily sent to the parliament for the first time. Can Rahul Gandhi publicly apologize to the people of Wayanad for this act? And can also say that even if I am not with you, my sister is with you. That is why I will keep coming and going in future too?


Now if Rahul leaves the Raebareli seat even by mistake? Then BJP is already angry with the defeat in UP. In such a situation, to take revenge for all its defeats, it will put all its strength only for this seat?


It is also possible that BJP may field Smriti Irani on this seat to take revenge for its defeat. In such a situation, this seat can get completely trapped without any effort. So why should such a step be taken out of ignorance, which will prove to be suicidal for oneself?


 It has been said that political moves should be made with an open mind. Just one wrong move can turn the opponents' losing game into a win.




हिन्दी रूपांतरण 


राहुल गांधी के सामने एक बड़ा यक्ष प्रश्न खड़ा हुआ है, कि वो दो सांसदों की जीती हुई सीट में से किसको छोड़े ? 


        फैसला सचमुच बेहद कठिन है।  क्योंकि वायनाड लोकसभा सीट की जनता ने उस समय राहुल का साथ दिया, जब मोदी लहर के साथ-साथ राष्ट्रवाद का मुद्दा भी जनता के ऊपर हावी था ?


       उन परिस्थितियों में जनता का राहुल को जिताना बेहद अहम हो जाता है ?  रायबरेली सीट गांधी परिवार के गढ़ के रूप में मानी जाती रही है, और शुरू से यहां से एक भावात्मक रिश्ता भी गांधी खानदान का रहा है ? 


        तो सवाल उठता है, कि छोड़े तो कौन सी सीट छोड़े ?  एक तो छोड़ना ही पड़ेगा ?  बहुत से लोगों का अनुमान है, खासतौर पर मीडिया सूत्रों से जो खबर छन-छन कर आ रही है, कि राहुल शायद रायबरेली सीट को छोड़ेगें ?  और वहां से प्रियंका गांधी पहली बार बतौर सांसद अपनी पारी की शुरुआत कर सकती है ?


      परन्तु मेरा मानना है, कि भले ही राहुल गांधी को वायनाड की जनता ने असीम प्यार दिया हो ?  परन्तु राहुल गांधी कोई को चांस नहीं लेना चाहिए ?   उन्हें भावनाओं में न बहकर  "वायनाड" सीट का ही त्याग करना चाहिए ?  


      कारण बहुत स्पष्ट है, वायनाड सीट कांग्रेस के लिए बेहद सुरक्षित सीट है, जिस पर प्रियंका गांधी को लड़वाकर पहली बार आसानी से संसद पहुंचाया जा सकता है ?  इस कृत्य के लिए राहुल गांधी वायनाड की जनता से सार्वजनिक रूप से माफी भी मांग सकते है ? और यह भी कह सकते है, कि चलो मैं नहीं, किन्तु मेरी बहिन तो आपके साथ है ? इसीलिए मैं आगे भी आता-जाता रहूंगा ?


     अब यदि गलती से भी राहुल ने रायबरेली सीट छोड़ दी ? तो बीजेपी उप्र की हार से वैसे ही जली हुई  है ?  ऐसे में वह अपनी सभी हारों का बदला लेने के लिए केवल इस सीट के लिए पूरी ताकत झौंक देगी ? 


      ये भी सम्भव है, कि वह इस सीट पर बीजेपी स्मृति ईरानी को अपनी हार का बदला लेने के लिए उतार दें ?  ऐसे में बैठे-बिठाए यह सीट पूरी तरह से फंस सकती है ?  तो नादानी में ऐसा कदम क्यों उठाया जाये, जो कि स्वयं पर ही आत्मघाती सिद्ध हो  जाये ?


     कहा भी गया है, कि राजनीति की चालें बहुत खुले दिमाग से चलनी चाहिए ?  सिर्फ एक गलत चाल विरोधियों की हारती बाजी को जीत में बदल देती है।

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