In a way, Congress has taken the right step by not attending the temple inauguration. There was a big religious crisis before the Congress, whether it should go to the inauguration of the temple or not? There were many reasons for that. But ultimately he had to take a decision, which he did.
The reason given by the Congress was the same as given by the four Shankaracharyas. It would have been better if Congress had given a different message, but given the kind of environment Modi has created, it wants to take bold steps, hence in the temple issue it thought it best to hide behind the four Shankaracharyas. Now if any person criticizes the Congress, then somewhere he will have to criticize the four Shankaracharyas also.
The absence of the four Shankaracharyas indicates that by establishing the sanctity of the temple, Modi has created a religious crisis for them in the coming days? Today, if a pure politician like Modi was successful in consecrating the temple, then why will the public need religious leaders like Shankaracharya in the coming days? Will she start doing her work considering these politicians as Shankaracharya? The question of livelihood has arisen for them too, it will be interesting to see how they will be able to deal with it in the coming days.
Anyway, the public (blind devotees) are seeing neither inflation nor unemployment these days? Perhaps they are not even capable of thinking about their own good and bad, because Hindu happiness is like this? They will be in dire straits only when one day Modi snatches away their bag containing five kilos of food grains with their photo on it.
If BJP keeps Hindu religion in this condition, then in the coming days all Hindu temples may be completely politicized? Then from now on, instead of religious leaders, only BJP politicians will be seen occupying every temple?
Modi has shown the way, only the small leaders of BJP are late to follow him.
हिन्दी रुपांतरण
कांग्रेस ने मंदिर उद्घाटन में न जाकर एक प्रकार से ठीक ही कदम उठाया है। कांग्रेस के सामने एक बड़ा धर्मसंकट था, कि वह मंदिर उद्घाटन में जाये या न जाये ? उसके लिए किंतु-परन्तु बहुत से कारण थे। पर अंततोगत्वा उसे एक निर्णय तो लेना ही था, जो उसने दिया।
कांग्रेस ने जो कारण बताया, वो उसने वहीं बताया, जो चारों शंकराचार्यों ने बताया। अच्छा होता, कांग्रेस कुछ अलग हटकर संदेश देती, परन्तु जिस तरह का माहौल मोदी ने तैयार कर दिया है, वह फूंक फूंक कर कदम उठाना चाहती है, इसलिए मंदिर प्रकरण में उसने चारों शंकराचार्यों के पीछे छिपना ही उचित समझा। अब यदि कोई सख्श कांग्रेस की आलोचना करेगा, तो कहीं न कहीं उसे चारों शंकराचार्यों की भी आलोचना करनी पड़ेगी।
चारों शंकराचार्य का न आना यह बताता है, कि मोदी ने मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा स्थापित करके आने वाले दिनों में उनके लिए भी धर्म संकट खड़ा कर दिया है ? आज मोदी जैसा विशुद्ध राजनैतिक राजनेता मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करने में सफल रहा, तो आने वाले दिनों में जनता को शंकराचार्य जैसे धर्मगुरुओं की क्या जरूरत ? वो तो अपना काम इन्हीं राजनेताओं को शंकराचार्य मानकर करने लगेगी ? रोजी रोटी का प्रश्न तो उनके लिए भी खड़ा हो चुका है, आगे आने वाले दिनों में वो इससे कैसे निपट पायेगें, यह देखना दिलचस्प रहेगा।
वैसे भी जनता को (अंधभक्तों को) इन दिनों न मंहगाई दिखाई दे रही है, और न बेरोजगारी ? वे शायद अपना भला बुरा सोचने के लायक भी नहीं रहे है, क्योंकि हिन्दू सुख है ही ऐसा ? ये तो तभी धर्मसंकट मे आयेगें, जब एक दिन मोदी इनके पांच किलों अनाज की फोटो लगी थैली भी छीन लेगा।
बीजेपी ने हिन्दू धर्म को यदि इसी हाल में रखा, तो आने वाले दिनों में समस्त हिन्दू मंदिरों का पूरी तरह राजनैतिकरण भी हो सकता है ? तब आगे से धर्मगुरुओं की जगह बीजेपी राजनेता ही हर मंदिरों पर अपना कब्जा जमाते हुए नजर आयेगें ?
रास्ता मोदी ने दिखा दिया है, बस बीजेपी के छुटभैयें नेताओं को अनुकरण करने की देरी है।
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