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Khurpech ( खुरपेंच )




 अयोध्या स्टेशन पर जैसे ही ट्रेन रुकी, मैं और शर्मा जी वहां से निकल लिये।  स्टेशन की सजावट देखकर शर्मा जी बोले---


----देखा संदीप भाई ?  पब्लिक का पैसा पानी  की तरह सिर्फ प्रचार के लिए झौंका जा रहा है ?


     मैंने इतनी ठंड में एक ठंडी सांस ली, और कहा--- 


--- शर्मा जी, इसी को सियासत कहते है।  


शर्मा जी --- क्या खाक सियासत कहते है, गरीब मर रहा है, यहां घी के दिये जलेंगे ?


मैंने कहा-----हां शर्मा जी, तभी तो आप जैसे लोग जलेगें ?  हाहाहाहाहा।  


      बात करते-करते हम लोग ऐसी जगह आ गये, जहां मोदी जी का एक पुतला खड़ा था,  जिसे सेल्फी पाइंट बोला जा रहा था,  जिसे देख मैं और शर्मा जी थोड़ा रुके,    

शर्मा जी थोड़ा भड़ककर बोले ----


-----देखा संदीप भाई, एक-एक जगह के छः-छः लाख रुपए से ज्यादा खर्च किए गये है। 


मैंने कहा -- इसीलिए तो RTI की रिपोर्ट देने पर  उस बन्दे का ट्रांसफर हो गया ?  


शर्मा जी----यह सब ठीक नहीं हो रहा, संदीप भाई ?  


      तभी शर्मा जी बातें सुन पुतले के पास खड़ा एक अंधभक्त चलकर पास आया और शर्मा जी से बोला


अंधभक्त---- क्या ठीक नहीं हो रहा ?  सभी कुछ तो ठीक चल रहा है।  आज पुतले खड़े है, कल मूर्तियां भी लग जायेगी ?  परसों इनकी भी प्राण प्रतिष्ठा कर दी जायेगी ?  और क्या चाहिए तुम लोगों को ? 


मैंने कहा--- भाई, शर्मा जी ठीक ही तो कह रहे है, देश के टैक्स का रुपया प्रचार में फूंका जा रहा है ?  


अंधभक्त --- अजीब खुरपेंच हो भाई ?  तुम्हें मालूम है कि मोदी कौन है ?  अरे साक्षात भगवान शिव व विष्णु के अवतार है वो ?   तुम जैसे अज्ञानी उन्हें जान भी नहीं पाओगे ? 


मैंने कहा---- इसमें जानने की क्या बात है ?  जो दिख रहा है, वहीं बता रहे है। अडानी पर ही देखो, कितने मेहरबान रहते है ? 


अंधभक्त --- तुम जैसे खुरपेंच लोग उन्हें कभी समझ भी नहीं पाओगें ?  अरे बताया था न ? शिव व विष्णु के अवतार है,  और अडानी और कोई नहीं, ....बल्कि  "सुदामा"  है ? 


शर्मा जी ने बड़ी मुश्किल से अपना थूंक निगला, और बोले------- अडानी .....?..... और......वो .....भी ...सुदामा.. ? ...  तो फिर हम क्या है ? 


अंधभक्त ---- अरें खुरपेंचों,  द्वापर युग में कृष्ण,  सुदामा को सभी कुछ दे रहे थे, कि नहीं ?.....वो तो बीच में आकर देवी रुकमणि जी ने उनका हाथ रोक लिया ?  भगवान कृष्ण ने उस समय तो देवीजी की बात रख ली। 

      पर तब से वो इतना गुस्सा खाये,...... इतना गुस्सा  खाये........ कि उन्होंने इस कलयुगी अवतार में शादी करते ही रुकमणी... यानी... अपनी पत्नी को छोड़ दिया ?  यहीं सोचकर कि,  न सुदामा को देते समय बीच में आयेगी, और न मुझे रुकना पड़ेगा।  बस देते जाओ......देते जाओ ......देते जाओ ।  देख लो, वो लगातार अभी भी किश्तें दे रहे है।  

वो तो अभी भी इतना गुस्से में है, कि भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा अकेले  "रड़ुये"  बनकर करेगें।  

     अब तुम लोग काहे भक्त और भगवान के बीच में आ रहे हो ?   

   समझे कि नहीं, कि कुछ और समझाये ?  


मैंने कहा--- भाई साहब, इतना गूढ़ अर्थ तो हम जिंदगी भर नहीं समझ पाते ?  आपने तो मेरी अब तक की बंद आंखें ही खोल दी ? 

 पर भाई,  जब अडानी सुदामा है, तो हमारी पहचान क्या होगी, ये तो हमें भी समझ नहीं आ रहा।   फिलहाल हम तो सुदामा से भी गये बीते है, ....हमारे ऊपर तुम्हारे कलयुगी भगवान की कृपा कब होगी ? 


अंधभक्त ---  अरें खुरपेंच, मोदी को मालूम था, कि तुम जैसे बुड़बक लोग उनके और सुदामा ...... मेरा मतलब ...अडानी के बीच अवश्य आओगें, इसलिए उन्होंने तुम जैसों के लिए अपनी फोटो छपी तस्वीर के साथ पांच किलों अनाज का पहले ही प्रबंध कर दिया था। 

      अब तस्वीर पूजों, और खिसको यहां से ?  चले आते है न जाने कहां से ?   नरक में भी स्थान नहीं  मिलेगा तुम लोगों को ?   

सिघोल भी तुम लोगों के कारण ही धारण किया है उन्होंने ? 


    उसकी बातें सुनकर हम और शर्मा जी आगे बढ़ चले,  मेरे साथ चल रहे शर्मा जी ख़ामोश व  कहीं गई बातों से काफी अभीभूत लग रहे थे।  मुझे उनमें एक नया अंधभक्त बनने की एक छोटी कोपल फूटती नजर आ रही थी।  

मैं शायद खुरपेंच ही था, इसीलिए खुरपेंच ही रह गया। 


   कुछ कदम और आगे बढ़े, तो एक चाय की दुकान पर हम दोनों रुक गये, वहां दुकान पर FM पर एक पुराना गीत चल रहा था, गीत के बीच की पंक्तियां मुझे वर्तमान परिस्थितियों के मुताबिक बेहद प्रासंगिक लग रही थी...................."कहां से आया तू , और कहां तुझे जाना है, खुश है वहीं, जो इस बात से बेगाना है"..............."गीत गाता चल ओ साथी गुनगनाता चल.....!"





English translation

As soon as the train stopped at Ayodhya station, Sharma ji and I left from there. Seeing the decoration of the station, Sharma ji said--- ----Seen Sandeep Bhai? Is public money being wasted like water just for publicity? I took a cold breath in this cold, and said--- ---Sharma ji, this is called politics. Sharma ji --- Does the politics say that the poor are dying, will ghee lamps be lit here? I said-----Yes Sharma ji, only then people like you will get jealous? Hahahahaha. While talking, we came to a place where an effigy of Modi ji was standing, which was being called a selfie point, seeing which I and Sharma ji stopped for a while. Sharma ji got a little angry and said--- -----See Sandeep Bhai, more than six lakh rupees have been spent at each place. I said - That's why that person got transferred after giving RTI report? Sharma ji----All this is not going well, Sandeep Bhai? Then, hearing Sharma ji's words, a blind devotee standing near the effigy came walking near him and said to Sharma ji. Blind Devotee---What is not going well? Everything is going well. Today the effigies are standing, tomorrow statues will also be installed? Will he also be cremated the day after tomorrow? What else do you guys want? I said---Brother, Sharma ji is right in saying that the country's tax money is being spent on publicity? Blind devotee --- Are you a strange idiot, brother? Do you know who Modi is? Hey, is he actually the incarnation of Lord Shiva and Vishnu? An ignorant person like you won't even know them? I said----What is there to know in this? Whatever is visible, we are telling only that. Just look at Adani, how kind he is? Blind Devotee --- Foolish people like you will never be able to understand them? Hey, I told you, right? He is the incarnation of Shiva and Vishnu, and Adani is none other than "Sudama"?


Sharma ji swallowed his spit with great difficulty, and said-------Adani.....?.....and...that...also...Sudama. .? ... Then what are we? Blind devotee ---- Hey scoundrels, in Dwapara Yuga, Krishna was giving everything to Sudama, or not?... Devi Rukmani ji came in between and stopped his hand? Lord Krishna kept Deviji's words at that time. But since then he became so angry, so angry that he left his wife Rukmani, that is, as soon as he got married in this Kalyugi incarnation? Thinking here, neither will she come in between while giving it to Sudama, nor will I have to stop. Just keep giving… keep giving… keep giving. Look, he is still paying installments continuously. He is still so angry that he will perform the consecration of Lord Ram alone by becoming "Raduye". Now why are you people coming between the devotee and God? Do you understand or not, or should you explain something else? I said---Brother, we are not able to understand such a deep meaning in our entire life? You opened my eyes that were closed till now? But brother, when Adani is Sudama, then what will be our identity, even we are not able to understand this. At present we have passed even Sudama, when will your Kalyugi God's blessings be upon us?


Blind Devotee --- Hey screw-up, Modi knew that stupid people like you will definitely come between him and Sudama… I mean… Adani, so he got his photo printed for people like you. Arrangements for kilos of grain had already been made. Now worship the picture, and move away from here? Who knows where they come from? You people will not get a place even in hell? He has also worn Sighol because of you people? After listening to his words, Sharma ji and I moved ahead, Sharma ji who was walking with me was silent and seemed quite overwhelmed by what was said. I could see a small bud budding in him to become a new blind devotee. Perhaps I was a screw-up, that's why I remained a screw-up. When we moved a few steps further, we both stopped at a tea shop, there an old song was playing on FM in the shop, the lines in the middle of the song seemed very relevant to me as per the current circumstances... .............."Where did you come from, and where do you have to go, only he who is a stranger to this is happy."............ .."Keep singing the song, O friend, keep smiling...!"





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