What was already being feared happened?
The Election Commission started trembling even in giving a direct notice to Modi. That is why, to maintain the impartiality of the Election Commission, a 2=2 formula was made while selecting it, in which the Chief Justice of the Supreme Court was also included. But Modi, in his pursuit of monopoly, came up with a unique formula of 2=1, in which Modi was always going to win. Now how can a person selected by Modi show the courage to issue a notice to Modi? Today, this step of the Election Commission is being criticized all over the country, but it is pretending to be unaware of all this.
It has become clear from all the above things that Modi is not a visionary leader for the country, he wants all the benefits immediately, then why should it have any adverse effects in the future? It is not for nothing that the opposition leaders call him a less educated or illiterate person? Rather, Modi is seen proving this not once, but again and again.
Can't Modi change his character by creating an army of blind followers? His character will remain the same, which has become clear from his recent speeches in Rajasthan. It will be in the country's interest if Modi does not come to power for the third time, otherwise it will not be surprising if Modi, due to his political ambitions, gets the country divided further in the name of Hindus and Muslims.
हिन्दी रूपांतरण
वहीं हुआ, जिसकी आशंका पहले से ही जताई जा रही थी ?
मोदी को सीधा नोटिस देने में भी चुनाव आयोग के हाथ-पैर कांपने लगें। इसीलिए तो चुनाव आयोग की निष्पक्षता बनाये रखने के लिए इसे चुनते वक्त 2=2 का फार्मूला बनाया गया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल थे। पर मोदी ने एकाधिकार जमाने के चक्कर में 2=1 का अनोखा फार्मूला ले कर आ गये, जिसमें जीत हमेशा मोदी की ही होनी थी। अब मोदी द्वारा चुना गया व्यक्ति, मोदी को नोटिस देने की हिम्मत कैसे दिखा सकता है ? आज चुनाव आयोग के इस कदम की पूरे देश में आलोचना हो रही है, पर वो इस सबसे अंजान बना हुआ है।
उक्त सारी बातों से इतना तो स्पष्ट हो गया, कि मोदी देश के लिए एक दूरदर्शी नेता नहीं है, वह सभी लाभ तात्कालिक चाहते है, फिर आने वाले समय में इसके कोई भी दुष्परिणाम क्यों न हो ? यों ही विपक्ष के नेतागण उन्हें कम पढ़ा-लिखा या अनपढ़ व्यक्ति नहीं बोलते ? बल्कि मोदी इसको एक बार नहीं, बल्कि बार-बार सिद्ध करते हुए भी दिखाई देते है।
अंधभक्तों की फौज बना लेने से मोदी अपना चरित्र नहीं बदल सकते ? उनका चरित्र वहीं रहेगा, जो अभी हाल में उनके राजस्थान के भाषणों से स्पष्ट हुआ है। तीसरी बार मोदी न आये, यहीं देश के लिए हितकर होगा, अन्यथा मोदी अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते देश के हिंदू-मुसलमान के नाम पर कुछ और टुकड़े करवा दें, तो ताज्जुब न होगा।
No comments:
Post a Comment