The latest example is Ukraine, Modi went there to become Chhabbeji, but returned as Dubey.
Modi has a bad habit of wanting to take credit for anything as quickly as possible, and in this haste and hurry, he has ruined many of the country's works.
Be it the leakage after the inauguration of the parliament, or the leakage after the foundation stone laying of the incomplete temple, or the cracking of roads after inauguration, or the poor condition of bridges after their inauguration.
Now, such an example of Modi's haste has been seen once again. When you had visited Russia, and knew that Ukraine has never proved to be a friendly country of India, then what was the compulsion in such a situation that you had to go there to rub your nose in front of the President of Ukraine?
The lapdog media keeps calling Modi a great diplomat? Where did the diplomacy go, when the Ukrainian President put the opposite allegation on Modi that if India stops buying oil from Russia, the war will end on its own?
This statement is like a strong slap by the Ukrainian President to the Indian Prime Minister. And our master of diplomacy Modi returned after receiving this slap.
Ukraine has never been a friend of India. After India conducted its nuclear test, this Ukraine had demanded the strictest international sanctions on India. But Russia stood shoulder to shoulder with India even then.
According to this conduct, the Indian Prime Minister should not have gone to Ukraine. But what to say now? We have handed over the entire country to an illiterate Prime Minister. So, it is futile to expect good results.
Modi has not only got himself disgraced by the Ukrainian President, but has also brought disgrace and shame to the entire India. He went there with the mere narcissism that "Can I stop the war?"
After returning humiliated from Ukraine, those who never tired of calling Modi a skilled diplomat must have also understood that Modi's diplomatic knowledge has not increased beyond zero.
Ukraine's President turned out to be a better diplomat than Modi, who plainly put forward his country's interests in front of our loquacious Prime Minister, and Modi's mouth froze.
Now when a person who has no time for anything other than mirrors, cameras and wearing different kinds of clothes, and who is always self-absorbed, what kind of strategy will he make for the country?
It remains to be seen how much Modi, who returned from Ukraine disgraced, fools the countrymen by keeping them in confusion.
हिंदी रुपांतरण
मोदी, भारत की भद्द अंतराष्ट्रीय स्तर पर पिटवाने कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे है।
ताजा उदाहरण यूक्रेन का है, मोदी गये तो थे, छब्बे जी बनने ? दुबे बनकर लौट है।
मोदी में एक बुरी आदत है, कि वो जल्दी से जल्दी किसी भी बात का सेहरा अपने सिर ओढ़ना चाहते है, इसी हड़बड़ी व जल्दी में वो देश के कई कामों का मटियामेट कर चुके है।
फिर वो चाहे संसद के उद्घाटन के बाद की लीकेज हो, या अधूरे मंदिर के शिलान्यास के बाद की लीकेज हो, वो चाहे सड़क उद्घाटन के बाद क्रैक होना हो, या पुलों के उद्घाटन के बाद उनकी दुर्गति हो।
अब ऐसी ही हड़बड़ी की मिसाल मोदी की एक बार फिर से देखने को मिली है। जब आप रुस का दौरा कर चुके थे, और यह जानते थे, कि यूक्रेन भारत का मित्र देश कभी साबित नहीं हुआ है, तो ऐसी स्थिति में क्या मजबूरी थी, जो आपको यूक्रेन के राष्ट्रपति के सामने अपनी नाक रगड़ने वहां जाना पड़ा ?
गोदी मीडिया, मोदी को बड़ा भारी कूटनितिज्ञ बताता रहता है ? कहां गई कूटनीति, जब यूक्रेन राष्ट्रपति ने उल्टा आरोप मोदी पर ही जड़ दिया, कि यदि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे, तो युद्ध अपने आप समाप्त हो जायेगा ?
यह वाक्य यूक्रेन के राष्ट्रपति द्वारा भारत के प्रधानमंत्री के लिए एक प्रकार से जोरदार थप्पड़ के समान है। और हमारे कूटनीति के मास्टर मोदी इस थप्पड़ को खाकर वापिस लौट आये।
यूक्रेन भारत का दोस्त कभी रहा ही नहीं है। भारत के परमाणु परीक्षण करने के बाद इसी यूक्रेन ने भारत पर सख्त से सख्त अंतराष्ट्रीय पाबंदियां लगाने की मांग की थी। किन्तु रूस भारत से तब भी कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा था।
इस चाल-चरित्र के हिसाब से भारत के प्रधानमंत्री को यूक्रेन में जाना ही नहीं चाहिए था ? किन्तु अब क्या कहे ? हमने तो पूरा देश ही एक अनपढ़ प्रधानमंत्री को सौंप रखा है ? तो अच्छे परिणामों की उम्मीद पालना भी फिजूल है।
मोदी ने यूक्रेन राष्ट्रपति से अपनी ही नाक नहीं कटवाई, वरन पूरे भारत की बेइज्जती व किरकिरी करवाई है, सिर्फ इस आत्ममुग्धता में वहां गये थे, कि "मैं युद्ध रुकवा सकता है ?"
यूक्रेन से बेइज्जत लौटने के बाद जो लोग मोदी को कुशल कूटनीतिज्ञ की संज्ञा देते नहीं थकते थे, उन्हें भी समझ आ गया होगा, कि मोदी का कूटनीतिज्ञ ज्ञान शून्य से ज्यादा नहीं बढ़ पाया है।
मोदी से ज्यादा कूटनीतिज्ञ तो यूक्रेन राष्ट्रपति निकले ? जिन्होंने बिना लाग-लपेट अपने देश के हितों को हमारे लफ्फाजी करने वाले प्रधानमंत्री के सामने रख दिया ? और मोदी के मुंह में एकदम से दही जम गया।
अब जब जिस व्यक्ति को शीशे, कैमरे व तरह-तरह के वस्त्रों को धारण करने से फुर्सत ही नहीं हो ? हमेशा आत्ममुग्धता में रहता हो ? तो वह व्यक्ति देश के बारे में वह क्या ख़ाक रणनीति बनायेगा ?
यूक्रेन से बेइज्जत होकर लौटे मोदी, देशवासियों को भ्रम में रखकर कितना बेवकूफ बनाते है, यह देखना अभी बाकी है।
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