Pages

Change of power (सत्ता परिवर्तन )






Ultimately, Congress suffered a massive defeat in the elections, and the Hindi heartland is almost extinct in the states.

 

       It is said that there is some reason for every reason, there were reasons for this defeat too, one of them was that Congress is still betting on old horses, which is not right now.  It would be more appropriate for Congress to use senior and very senior leaders in central level politics rather than in state level politics.


       Another problem facing Congress is that it has become a party with much less money than BJP.  With the government remaining in fewer states, the election funding is becoming less and less, which is becoming extremely painful for it.  On the other hand, BJP party is wallowing in heaps of wealth.


       To maintain energy at the state level, it would be appropriate to transfer leaders like Kamal Nath and Gehlot from the state to the Centre.  It would be wise to make Sachin Pilot in-charge in Rajasthan.  Similarly, decisions will have to be taken in Madhya Pradesh also.


       The current election defeat has brought many troubles for the Congress.  Now it will have to compromise more with regional parties in the Lok Sabha elections.  At the same time, it seems to be difficult to stop the Modi mission, especially when the people of the country are taking decisions on the issue of Hindutva with their eyes closed.


      If Congress has to win further, then it will have to take up BJP's "Sanatan" and "Hindutva issues" from time to time, because the "blind devotee" of the country will no longer understand simple things, hence the religion card is especially important.  But it is very important to play in the Hindi belt states, because in our country there are more people with "religious faith" than "educated" people, who are not so much troubled by inflation, employment, health, education and medicine, but are worried about the "Hindu threat".  I am in,” just saying this makes him start shivering.



हिन्दी रुपांतरण


आखिरकार चुनावों में कांग्रेस की एकतरफा बुरी तरह हार हो गई, और वह हिन्दी पट्टी राज्यों में लगभग समाप्त सी हो चुकी है। 

 

      कहते है कि हर वज़ह के कुछ न कुछ कारण अवश्य होते है, इस हार के भी कारण रहे है,  उनमें से एक कारण यह भी रहा,  कि कांग्रेस अब भी पुराने घोड़ो पर दांव लगा रही है, जो अब ठीक नहीं है।  कांग्रेस को वरिष्ठ व अति वयोवृद्ध नेताओं का इस्तेमाल राज्य स्तर की बजाय केन्द्रीय स्तर की राजनीति में करना ज्यादा उचित रहेगा।  


      कांग्रेस के सामने एक समस्या यह भी है,  कि वह बीजेपी की अपेक्षा बेहद कम पैसे वाली पार्टी होकर रह गई है। कम राज्यों में सरकार रह जाने से चुनावी फंडिंग अल्प होते जाना उसके लिए बेहद कष्टकारी होता जा रहा है।  वहीं दूसरी तरफ बीजेपी पार्टी दौलत के ढेर पर लोट लगा रही है। 


      राज्य स्तर पर एनर्जी बनी रहे, इसके लिए अब कमलनाथ व गहलौत जैसे नेताओं को राज्य से केंद्र की तरफ स्थानांतरण करना ही उचित रहेगा।  राजस्थान में सचिन पायलट को प्रभारी बना देना ही बुद्धिमानी होगी। इसी तरह मध्यप्रदेश में भी निर्णय लेने होगें। 


      वर्तमान चुनावी हार कांग्रेस के लिए एकसाथ कई मुसीबतें भी साथ लाई है।  अब उसे लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों से ज्यादा समझौता करना पड़ेगा।  साथ ही मोदी मिशन रोकना भी कठिन होता प्रतीत हो रहा है, खासतौर पर जब, देश की जनता हिंदुत्व के मुद्दे पर बंद आंखों से फैसले ले रही हो। 


     कांग्रेस को यदि आगे जीत हासिल करनी है, तो उसे भाजपा के "सनातन"  व "हिन्दुत्व मुद्दों" को भी समय-समय पर लपकना ही होगा, क्योंकि देश की "अंधभक्त जनता"  को अब सीधी बातें  समझ नहीं आयेगी, इसलिए धर्म कार्ड खासतौर पर हिन्दी पट्टी राज्यों में खेलना अति आवश्यक है, क्योंकि हमारे देश में  "शिक्षित"  से ज्यादा  "धार्मिक आस्था"  वाले व्यक्ति ज्यादा है,  जो एक बार मंहगाई, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा व चिकित्सा से इतना परेशान न हो,  पर  "हिन्दू खतरे में है,"  कहने मात्र से उनकी कंपकंपी छूटने लगती है।



 

No comments:

Post a Comment