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Tuesday, October 31, 2023

learning (सीख)


Slowly but surely, 10 years of Modi era are about to be completed, but these 10 years will be an introspection for all sections, what did they lose and what did they gain in these 10 years?  In these ten years, the number of those who will lose will be very large, but it is not that the number of those who will gain will be negligible?

 Unemployed people will be at the top among the losers during the Modi era, who not only lost ten years of their life but also got trapped in Modi's deception of providing 2 crore jobs every year.  What was the government's stand on the martyrdom of firefighters who had served for four years, has come to light recently.

 Same was the condition of the farmers during the Modi era, neither did the income double in the year 2022 as per Modi's promise, nor could they get proper MSP on the crops, on the contrary, more than 700 farmers died due to the Tughlaqi black agriculture law brought by Modi.  , and there was not even a wrinkle on the face of the present Modi government, on the contrary Modi even asked the then Governor Satyapal Malik, "Had he died for us."

       Similarly, all the poor could neither get permanent houses as promised by Modi, nor got relief from inflation.  On the contrary, the price of Rs 450 cylinder reached more than Rs 1100.  Don't talk about the businessmen, they hardly remember the pain they have suffered in these years due to GST and Corona period?

 Apart from inflation, rising prices of petrol diesel, the common man has been passing his time in the ups and downs of tomato, onion, etc.  Overall, the common man has simply got lost in Modi's bluffs and rhetoric over the years.

 Then who found it?  Found by the same person, who sycophantised the government, advocated, got huge funding to the party, joined Modi to escape from ED, IT and CBI, even if not every poor could get a permanent house, but BJP party office.  Five star and seven star level are being developed, this is the real reality.  Over the years, BJP has been the richest party to receive election funding.

 Had the Hindenburg report not come, Adani would have been made the world's second largest exporter through shell companies at the instigation of Modi?  If we want to see the true meaning of real development, then we will have to look into the houses of every person associated with BJP, only then we will know, what is called "getting"?  A glimpse of this will be visible only when there is a change of power, and ED, IT and CBI will be standing at their doors and investigating them thoroughly.

 It is said that time passes by teaching something or the other to everyone, so in these years the voters of India must have learned a lot, they must have come to know that giving the reins of power to a charlatan, a rhetorician and an illiterate person is a mistake.  What are the disadvantages?

       In this tenure, it is not that only the common people got to learn from Modi, but the Congress Party must have also learned a lot?  He must be remembering his past mistakes?  He might also be remembering that time, why he could not ban organizations like RSS in India in time?  Why did he allow a Hindu-Muslim communal party to flourish like this?  Will these mistakes be rectified after coming to power?  This will also be a big question.

 By the way, Congress people must have learned from Modi that how can ED, IT and CBI be misused to the maximum while being in power?  How can the army be used for election campaigning?  Despite one's own mistake in Pulwama, how are votes taken from the public in the name of nationalism on the martyrdom of soldiers?

 Congress should keep in mind that it is in the interest of the country and society to crush the snake's pupa in the beginning, otherwise one has to be prepared to bear its bite when it grows up.


हिन्दी रुपांतरण

#सीख
      धीरे-धीरे ही सही, मोदीकाल के दस वर्ष पूरे होने को है, पर ये दस वर्ष सभी वर्गों के लिए आत्मचिंतन के रहेगें, कि उन्होंने इन दस वर्षों में क्या खोया, और क्या पाया ?  इन दस वर्षों में खोने वालों की संख्या बहुत तादाद में मिल जायेगीं,  परन्तु ऐसा भी नहीं है, कि पाने वालों  की संख्या नगण्य हो ?   

      मोदीकाल में खोने वालों में बेरोजगार व्यक्ति सबसे ऊपरी स्थान पर रहेगें,  जिन्होंने न केवल अपनी दस वर्ष की उम्र खोई, बल्कि वो मोदी के दो करोड़ हर वर्ष रोजगार देने वाले झांसे में भी फंसे रहे।  चार साल की नौकरी वाले अग्निवीरों की शहादत पर सरकार का रुख किस प्रकार का था, वो हाल ही में सामने आ चुका है। 
       
      मोदीकाल में किसानों का भी यही हाल रहा, न तो मोदी के कहे अनुसार वर्ष 2022 में दोगुनी आमदनी हुई, और न फसलों पर उचित  MSP मिल सका ?  उल्टा मोदी के लाये तुगलकी काले कृषि कानून के चक्कर में 700 से अधिक किसानों ने दम तोड़ दिया, और वर्तमान मोदी सरकार के चेहरे पर शिकन तक नहीं आई।   मोदी ने तत्कालीन गवर्नर सत्यपाल मलिक से यह तक भी कह दिया, कि  "क्या वो मेरे लिए मरे थे ?" 

       इसी प्रकार सभी गरीबों को मोदी के वायदे के मुताबिक न तो पक्के घर मिल सके, और न मंहगाई से राहत मिली।  बल्कि  दस वर्ष पहले का 450 का सिलेंडर 1100 रुपए से भी ऊपर पहुंच गया ।    कारोबारियों की तो बात ही मत कीजिए, जितनी पीड़ा उन्होंने  GST व कोरोनाकाल में इन वर्षों में भोगी है, शायद ही वो इसे याद रखना चाहेंगे ?  

    आम आदमी तो मंहगाई, पैट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों के अलावा  टमाटर, प्याज, आदि के उतार चढ़ाव में ही अपना समय पास करता रहा है।  कुल मिलाकर सामान्य व्यक्ति ने इन वर्षों में, मोदी के झांसे व जुमलेबाजी में बस खोया ही खोया है। 

       फिर पाया किसने ?  पाया उसी ने,  जिसने सरकार की चाटुकारिता की,  पैरोकारी की, बीजेपी पार्टी को मोटी फंडिंग कराई,  जिन्होंने ED, IT व CBI से बचने के लिए मोदी का दामन थामा, चाहे हर गरीब को पक्का मकान न मिल पाया हो,  पर बीजेपी पार्टी के चमचमाते  फाइव स्टार व सेविन स्टार के दफ्तर खूब बने है, यहीं वास्तविक हकीकत है।   इन वर्षों में बीजेपी को बेतहाशा चुनावी फंडिंग, नकद व  इलैक्ट्रौल बांड के जरिए भी प्राप्त हुई है,  जिससे वो आज देश की सबसे अमीर पार्टी बन चुकी है। 
2022
        वो तो यदि हिंडनवर्ग की रिपोर्ट न आती, तो अडानी को,  मोदी की शह पर शैल कंपनियों के माध्यम से विश्व का दूसरे नंबर का अमीर तो बना ही दिया था ?   

     कहने का मतलब यह है कि असली विकास के सच मायने में यदि दर्शन करने है, तो बीजेपी से जुड़े हर व्यक्ति के घरों में झांकना होगा,  तभी पता चलेगा, कि   "पाना"  किसे कहते हैं ?   इसके "पाये"  हुए की पहली झलक तभी से मिलने लग जायेगी,  जब सत्ता का परिवर्तन होगा। तब यहीं ED, IT व CBI के आफीसर, इन्हें  बेनकाब करने के लिए, इनके दरवाजों पर खड़े होकर इनकी गहन जांच कर रहे होगे। 

      कहते है, कि वक्त कुछ न कुछ हर व्यक्ति को सिखाकर अवश्य जाता है, तो इन वर्षों में भारत के वोटरों ने भी बहुत कुछ सीखा होगा,  उन्हें पता चल चुका होगा,  कि एक झांसेबाज, जुमलेबाज़ व अनपढ़ व्यक्ति को सत्ता की बागडोर देने के क्या-क्या नुकसान होते है ? 

         इस कार्यकाल में ऐसा नहीं है, कि मोदी से आम व्यक्तियों को ही सीखने को मिला,  बल्कि कांग्रेस पार्टी ने भी बहुत कुछ सीखा होगा ?  उन्हें अपनी की गई  पिछली गलतियां अवश्य याद आ रही होगी ?  उन्हें वो समय भी याद आ रहा होगा,  कि क्यों वो समय रहते RSS जैसे संगठनों को भारत में प्रतिबंधित नहीं कर सकें?   क्यों एक हिन्दू-मुस्लिम करने वाली सांप्रदायिक पार्टी को उन्होंने यों ही पनपने का मौका दिया ?   क्या ये भूलें आगें सत्ता प्राप्ति के बाद  सुधारी जायेगी ?   यह भी एक बड़ा प्रश्न रहेगा। 

       वैसे कांग्रेस के लोगों ने मोदी से यह अवश्य सीखा होगा,  कि सत्ता में रहकर ED, IT व CBI का अधिकतम दुरुपयोग कैसे किया जा सकता है ?   सेना का उपयोग चुनाव प्रचार के लिए भी कैसे हो सकता है ?   पुलवामा में खुद की भूल के बाद भी,  सैनिकों की शहादत पर राष्ट्रवाद के नाम पर जनता से वोट कैसे लिऐ जाते है ?  

    कांग्रेस को यह रखना चाहिए , कि सपोले को शुरु में कुचल देना ही देश व समाज के हित में रहता है,  अन्यथा बड़े होने पर उसका दंश सहने के लिए भी तैयार रहना पड़ता है।

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