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Friday, October 9, 2020

MY MOTHER STORY



      सभी लोगों की तरह से मेरी भी मां थी, हम तीन भाई-बहनों में दो बहिनें और मैं भाई था, मेरी मां ने हम तीनो बच्चों का ध्यान रखा।  हमारे पापा हम लोगों का साथ जल्दी ही छोड़ गये थे, पर मेरी मां जिन्हें मैं प्यार से अम्मा भी बुलाता था, ने कभी भी यह महसूस नहीं होने दिया कि हमारे बीच अब हमारे पापाजी नहीं है। जैसे-जैसे समय गुजरा, मेरी दोनों बहिनों के विवाह हो गये, एक बहिन का विवाह मेरे पापाजी कर गये थे, एक बहिन का विवाह उनके संंसार से विदा होने के बाद हुआ। दोनों बहिनें अपने-अपने परिवारों में रच-बस गई, बस रह गये हम दोनो लोग।  उस वक्त मेरी उम्र लगभग 28-29 की रही होगी, मैं उन दिनों भंयकर गठिया रोग से पीड़ित चल रहा था, जीवन जीने की इच्छा खत्म होती जा रही थी, चलना-फिरना तक दूभर हो गया था, सारे रास्ते बंद होते नजर होते आ रहे थे, तो ऐसे वक्त में मेरी मां ने मुझे हौसला दिया, मेरी कदम-कदम पर हौसला अफजाई की, जब भी मैं अपने को अकेला पाता, और एक कमरे में कैद सा हो जाता, उस वक्त अम्मा मेरे साथ बहुत मजबूती से खड़ी नजर आती थी।  समय के साथ-साथ अम्मा कब मेरी एक अच्छी मित्र भी बन गई, मुझे पता ही नहीं चला। मैं कोई भी फैसला लेता था, तो अम्मा से सलाह अवश्य लेता था। 
            एक दिन मैंने अम्मा को कहा कि अम्मा मैं आये दिन बीमार रहता हूं, घर की परिस्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं है, इसलिए मैं खूब सोच-समझकर फैसला ले रहा हूं, कि मैं भविष्य में शादी नहीं करूंगा। अम्मा को मेरे इस फैसले से दुख हुआ, उन्होंने मुझे काफी समझाया, जब मैंने अपना पक्ष रखा तो उन्होंने मेरे फैसले का सम्मान करते हुए इसकी इज़ाजत दे दी। अब इस फैसले के बाद मुझे और अम्मा दोनों को मालूम था, कि मेरी जिंदगी के रंग तब तक ही है, जब तक अम्मा का साथ रहेगा, पर मैं आगे की नहीं सोच रहा था, क्यों कि अम्मा मेरे साथ मजबूती से मेरे साथ खड़ी थी। जिन्दगी के उन सुनहरे पलों को मैं भरपूर जीना चाहता था, और काफी हद तक जिया भी।  कुछ अभाव रहा, पर अभाव की सीढ़ियां अम्मा के रहते मैं आराम से चढ़ता रहा। मैंने आगे चलकर एक स्टेशनरी की दुकान खोल ली, अम्मा ने वहां भी मेरा भरपूर साथ दिया, वह रोज़ मेरे साथ सुबह से शाम तक दुकान पर जाने लगी, और दुकान चलाने में जो भी सहयोग होता, उसे कराती रहती।  इसके अलावा वह घर का भी पूरा काम-काज भी देखती रहती थी। यह सब करते-करते अम्मा को 14 वर्ष हो गये।  अम्मा अब 82 वर्ष की हो चली थी, शरीर में गिरावट आना शुरू हो चुकी थी, पर वह हमेशा की भांति अपनी उम्र को मात देकर आगे बढ़ती जा रही थी, पर जिंदगी में सब कुछ अच्छा ही होगा, यह नहीं होता, आखिर बुरे दिनों की दस्तक हमारी जिंदगी में पड़ चुकी थी।  
            11 अगस्त, 2018 का दिन का समय था, हम लोग दुकान जाने वाले थे, कि अचानक अम्मा के सीने में बहुत तेज दर्द उठा, मैं घबड़ा गया, अम्मा को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, मैंने आनन-फानन में अम्मा को अस्पताल में भर्ती कराया, जहां डॉक्टरों ने अम्मा की हालत को काफी सीरियस बताया, हार्ट फेलियर, किडनी प्रोब्लम व फेफड़ों में पानी भरने से उनकी हालत काफी गंभीर हो चुकी थी। अम्मा करीब समय-समय पर 2 माह तक अस्पताल में भर्ती रहीं, डाक्टर कुछ नहीं कर पा रहे थे, घर का बचा हुआ काफी पैसा लग चुका था। इस बात का अहसास अम्मा को भी था, इसलिए एक दिन अम्मा ने वार्डमैन से कहकर मुझे बुलवाया, और कहा कि तुम मुझे किसी भी तरह इस अस्पताल से घर ले चलो, यहां रहीं, तो लगता है, मैं बच नहीं पाऊंगी।  उनकी बात सुनकर मैं पशोपेश में पड़ गया, समझ नहीं आ रहा था कि अम्मा की बात मानूं, या डाक्टरों की।  अम्मा के बार-बार आग्रह पर मैंने यह कठिन निर्णय आखिरकार ले ही लिया, कि अब जो भी होगा, देखा जायेगा, हो सकता हो, यह उनकी आखिरी इच्छा हो । मैं अम्मा को अस्पताल से आक्सीजन सांस नली और केथेटर लगे हुए घर ले आया।
          अब अम्मा को घर तो ले आया,पर नित्य प्रति दिन मन में अनहोनी की काफ़ी शंकाएं जन्म लेती रहती, और मैं काफी परेशान रहता था, पर मेरी अम्मा उस वक्त मुझे बुलाकर बेड पर लेटे-लेटे ही समझाती, कि चिंता मत करो, सब ठीक हो जायेगा। मै कभी अपने को और कभी अम्मा के साहस को देखता, पर कह कुछ नहीं पाता था।  जैसे-जैसे समय बीतता गया, मेरी शंकाएं खत्म होती गई, अम्मा धीरे-धीरे ही सही, रिकवर होना शुरू कर दिया।  और एक दिन वह भी आ गया, जब अम्मा एकदम ठीक हो गई, सचमुच अम्मा मेरी आंखों के सामने मौत को हराकर मेरे सामने खड़ी थी, वह न केवल चल-फिर रहीं थीं, वल्कि घर के काम-काज भी अच्छे से करने लगीं, जो मेरे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था।
          कहानी यहां खत्म नहीं हुई है दोस्तों, 
 अभी बाकी है, जिसे मैं पार्ट-2 में शेयर करूंगा।
    
my mother Photo
         
      Like all people, I too had a mother, we had two siblings and I was a brother, my mother took care of all three of us.  Our father had left us soon, but my mother, whom I used to call Amma affectionately, never let me feel that we do not have any papaji among us.  As time passed, both my sisters got married, one sister got married to my father's presence, one sister got married after them.  Both sisters got settled in their families, both of us are left.  At that time, I must have been around 28–29, I was suffering from arthritis in those days, the desire to live life was going away, it had become difficult to walk, all the roads were closed.  At that time, my mother encouraged me, encouraged me at my step, whenever I found myself alone, and was imprisoned in a room, Amma stood very firmly with me.  used to come.  With time, I did not know when my Amma became a good friend of mine.  I would take advice from Amma if I took any decision.
              One day I told Amma that Amma is sick the day I come, even the situation at home is not very good, so I am deciding very carefully that I will not marry in future.  Amma was saddened by this decision of mine, she explained it to me quite a lot, when I presented my stand, she respected my decision and allowed it.  Now after this decision both me and Amma knew that the color of my life is as long as Amma will be with me, but I was not thinking ahead, because Amma was standing firmly with me.  .  I wanted to live those golden moments of life to the fullest, and lived to a great extent.  There was some absence, but I kept climbing comfortably in the absence of Amma.  I later opened a shop stationery, Amma also supported me there, she used to come to the shop with me from morning to evening, and would help me in whatever way she could in running the shop.  Apart from this, she also used to watch the entire work of the house.  By doing all this, Amma had 14 years.  Amma was now 82 years old, her body had started to decline, but she was going ahead by beating her age like always, but everything will be good in life, it does not happen, after all the bad days.  That knock had hit our life.

 It was day of August 11, 2018, we were about to go to the shop, that suddenly there was a very severe pain in Amma's chest, I was terrified, Amma was having trouble breathing, I hurried Amma to the hospital.  Admitted to the hospital, where doctors described Amma's condition as severe, heart failure, kidney problem and water filling in her lungs had become very serious.  Amma was hospitalized for about 2 months from time to time, doctors were not able to do anything, the remaining amount of the house was spent.  Amma also realized this, so one day Amma called the wardman and called me, and said that you take me home from this hospital anyhow, if you stay here, I think I will not be able to escape.  After listening to him, I got confused, I could not understand whether to listen to Amma or the doctors.  On Amma's repeated request, I took the difficult decision that whatever will happen now will be seen, I brought Amma home with a windpipe and catheter.
              By bringing Amma at home, every day there would be a lot of doubts in my mind, and I used to get very upset, but my Amma used to call me at that time and lie on her bed and say, don't worry, everything will be fine.  I sometimes saw myself and sometimes Amma's courage, but could not say anything.  As time passed, my doubts started to fade, Amma started recovering slowly.  And one day he too came, when Amma was completely cured, Amma was literally standing in front of me, beating death in front of my eyes, and not only walking, but also started doing household chores well,  Which was nothing short of a miracle for me.

 The story is not over here, yet, which I will share in Part-2.

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