गर्व
"भूखे भजन न होय गोपाला ...." यह शब्द यों ही गठित नहीं हुये, बल्कि इसमें यहीं उच्चारित है कि जब तन भूखा हो, तो भजन में भी मन नहीं लगता।
ठीक इसी प्रकार जिस देश की 80 प्रतिशत आबादी देश की आजादी की 75 वीं वर्षगांठ आने तक सरकारी आंकड़े के अनुसार पांच किलो अनाज पर आश्रित या केन्द्रित होकर रह गई हो, तो उस देश की जनता भला कैसे गौरवान्वित होगी ? जब तन ही भूखा-प्यासा होगा, तो देश पर कैसे गर्व होगा ?
विडंबना यहीं खत्म नहीं होती, जो लोग चुनकर संसद जाते है, ये ज्यादातर अमीर होते है, पर ये लोग हर क्षेत्र में तो लाभ पाते ही है , साथ ही कैंटीन तक से बेहद ही सस्ते दर पर भोजन करते है। पर इसके विपरीत एक गरीब व्यक्ति बिना GST चुकाये एक निवाला भी नहीं खा सकता। मूलभूत आवश्यकताओं की तो बात ही छोड़ दीजिए।
मौलिक अधिकारों के मिलने की अनुभूति ही उस देश के नागरिक को अपने देश पर गर्व करने की प्रेरणा देती है। तंगहाली तो सिर्फ भोजन मांगती है। जो हो रहा है।
जयहिंद।
"भूखे भजन न होय गोपाला ...." यह शब्द यों ही गठित नहीं हुये, बल्कि इसमें यहीं उच्चारित है कि जब तन भूखा हो, तो भजन में भी मन नहीं लगता।
ठीक इसी प्रकार जिस देश की 80 प्रतिशत आबादी देश की आजादी की 75 वीं वर्षगांठ आने तक सरकारी आंकड़े के अनुसार पांच किलो अनाज पर आश्रित या केन्द्रित होकर रह गई हो, तो उस देश की जनता भला कैसे गौरवान्वित होगी ? जब तन ही भूखा-प्यासा होगा, तो देश पर कैसे गर्व होगा ?
विडंबना यहीं खत्म नहीं होती, जो लोग चुनकर संसद जाते है, ये ज्यादातर अमीर होते है, पर ये लोग हर क्षेत्र में तो लाभ पाते ही है , साथ ही कैंटीन तक से बेहद ही सस्ते दर पर भोजन करते है। पर इसके विपरीत एक गरीब व्यक्ति बिना GST चुकाये एक निवाला भी नहीं खा सकता। मूलभूत आवश्यकताओं की तो बात ही छोड़ दीजिए।
मौलिक अधिकारों के मिलने की अनुभूति ही उस देश के नागरिक को अपने देश पर गर्व करने की प्रेरणा देती है। तंगहाली तो सिर्फ भोजन मांगती है। जो हो रहा है।
जयहिंद।
अंग्रेजी रुपांतरण
Proud
"Bhuke bhajan na hoy Gopala...." These words were not formed just like that, but it is pronounced in it that when the body is hungry, the mind does not even feel like doing bhajan.
In the same way, the people of a country whose 80 percent population has remained dependent or focused on five kilos of food grains according to government figures till the 75th anniversary of the country's independence, then how can the people of that country be proud? When the body itself is hungry and thirsty, then how can one be proud of the country?
The irony does not end here, the people who get elected and go to the parliament, they are mostly rich, but these people get benefits in every field, as well as eat at very cheap rate from the canteen. But on the contrary, a poor person cannot eat even a morsel without paying GST. Leave aside the matter of basic needs.
The feeling of getting fundamental rights only inspires the citizen of that country to be proud of his country. Poverty only asks for food. What is happening
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