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Monday, October 9, 2023

Diplomacy (कूटनीति )


While India should have played the role of "neutral" in the Israel-Hamas war, on the contrary, due to Modi's "grandstanding" and "over-enthusiasm", India openly announced its support for Israel.

      “Bloody” Modi did not even think twice while announcing that India has very good relations with many Muslim countries.  His making such statements can have far-reaching consequences for those countries in the future, and can these statements become a "troubleshooting problem"?  But can India not expect more than this from an "illiterate" and "immature" Prime Minister?

       This immaturity of Modi was not visible only this time?  In fact, even before this he has repeatedly proved his "immaturity" and "illiterate personality".  Then whether it is the case of accidentally eating biryani with Nawaz Sharif in Pakistan?  Or should it be an issue of campaigning for “Trump government this time” in the US elections?  Every time “illiterate” and “immature” Modi has tarnished the reputation of himself as well as his country.

     If Modi had to learn something, could he have learned from his neighboring countries "China" and "Russia"?  If both these countries wanted, they too could have given immature statements like Modi?  But no?  Sensing the viewpoint of all other countries and keeping in view the situation, both these countries considered it appropriate to remain in a "neutral" role.

     Is all this not happening just like that?  Which country's MP, in the full Parliament, addresses a Muslim MP with indecent words like "Oy Bhadve", "Oy Katuve", "Ugravadi" etc., and in the name of proceedings, there is "sui bate sannata" till date?  It can be easily estimated how much “communal thinking” must have entered the mind of the “illiterate Prime Minister” of that country.


हिन्दी रुपांतरण

जहां भारत को इजरायल-हमास जंग में  "तटस्थ"  की भूमिका निभानी चाहिए थी,   वहीं इसके विपरित मोदी के "बड़बोलेपन"  व  "अति उत्साह"  के कारण भारत ने खुलेआम इजरायल के पक्ष में खड़े होने की घोषणा कर दी।   

     "बड़बोले"  मोदी ने यह घोषणा करते वक्त तनिक भी नहीं सोचा,  कि भारत के बहुत से मुस्लिम देशों से भी बहुत अच्छे संबंध है।  उनके इस तरह के बयान देने से भविष्य में उन देशों से भी इसके दूरगामी परिणाम हो सकते है, और बैठे-बिठाए यह बयान  "जी का जंजाल" बन सकते  है ?  पर भारत देश को एक "अनपढ़"  व  "अपरिपक्व"  प्रधानमंत्री से इससे ज्यादा की उम्मीद भी तो नहीं की जा सकती ? 

      मोदी की यह अपरिपक्वता केवल इसी बार नहीं दिखाई दी ?  बल्कि इससे पहले भी वे अपनी "अपरिपक्वता"  व "अनपढ़ व्यक्तित्व"  को बार-बार साबित कर चुके है ।  फिर वो चाहे पाकिस्तान में नवाज शरीफ के साथ अकस्मात बिरयानी खाने का मामला हो ?   या फिर अमेरिकी चुनाव में   "अबकी बार ट्रंप सरकार"  के प्रचार का मुद्दा हो ?   हर बार "अनपढ़"  व  "अपरिपक्व"   मोदी ने खुद के साथ-साथ अपने देश की प्रतिष्ठा को भी धूमिल किया है। 

    मोदी को कुछ सीखना ही था,  तो अपने पड़ोसी देश  "चीन"  व  "रूस"  से सीख ले लेते ?   ये दोनों देश भी चाहते, तो ये भी मोदी की तरह का अपरिपक्व ब्यान दे सकते थे  ?   पर नहीं ?   इन दोनों देशों ने अन्य सभी देशों के नजरिए को भांपते हुए व हालात के मद्देनजर  "तटस्थ"  भूमिका में रहना ही उचित समझा।  

    ये सब कुछ यों ही नहीं हो रहा ?  जिस देश का सांसद,  भरी संसद में, एक मुस्लिम सांसद को "ओय भड़वे", "ओय कटुवे",  "उग्रवादी"  आदि जैसे अमर्यादित शब्दों से उच्चारित करता हो,  और कार्यवाही के नाम पर आज तक  "सुई बटे सन्नाटा" हो ?   उस देश के "अनपढ़ प्रधानमंत्री"  के दिमाग में कितनी  "सांप्रदायिक सोच"  घुसी होगी,  सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।

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