अब तक की कहानी में मेरी अम्मा पैरालिसस का शिकार हो चुकी थी। जो मेरी अम्मा मेरा सबसे ज़्यादा ध्यान रखती थी, और जिन्होंने कभी जिन्दगी से हार नहीं मानी, जो मेरी हमेशा प्रेरणा बन कर रहीं, वह आज मेरे सामने एक असहाय हालत में थी, उनकी इस हालत को मैं स्वीकार नहीं पा रहा था, समय ने मेरे साथ जो मजाक किया था, उसे देखने को विवश था, कर कुछ नहीं पा रहा था।
अब मैं जब भी अम्मा के पास बैठता, तो काफी उदास रहता, अम्मा भी थोड़ा खामोश रहने लगीं थीं। मैं अम्मा की स्थिति को देखकर अम्मा को समझाने की कोशिश करता था, पर बाद में मुझे महसूस होता था, कि यह मैं अम्मा को नहीं, अपने आप को समझा रहा हूं। शायद मेरी मन की शक्ति इतनी कमजोर हो गई थी, उसे ही संभालने का प्रयास कर रहा था।
मेरे इस तरह उदास रहने पर अम्मा ने मुझे एक दिन अपने पास बैठने को कहा, तो मैं उनका अनुसरण करके पास बैड पर बैठ गया। उन्होंने मेरे प्यार से बालों में हाथ फेर कर कहा, लगता है तुम कुछ ज्यादा ही दुःखी हो रहें हो, अरे मेरे दोनों पैर चल रहें हैं, बस मैं उन पर खड़ी नहीं हो पा रही हूं, कोशिश तो कर ही रहीं हूं, आज नहीं तो कल मैं फिर से चलने-फिरने लगूंगी। फिर पहले जैसा समय आ जाएगा। बस तुम समय का इंतजार करो, और दुःखी मत रहो, अरे मैं बीमार ही तो हुई हूं, मर थोड़े ही गई हूं। अभी तो मैं लगभग 10 साल तुम्हारे साथ रहूंगी। अम्मा की इस तरह सकारात्मक बातें सुनकर मुझे बहुत चैन मिला।
पर मनुष्य जो सोचता है, वह नहीं होता है, अम्मा की दशा दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही थी, अब मेरे लिए एक नई मुसीबत खड़ी हो गई, करोना भारत में अपने शबाब पर था, इस कारण आगरा में डाक्टरों का लगभग-लगभग अकाल ही पड़ गया। कोई भी डॉक्टर इलाज करने को तैयार ही नहीं हो रहा था। विदेशों का तो पता नहीं, पर भारत में यदि कोई व्यक्ति गम्भीर रूप से बीमार है, और उस पर उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर है, तो भगवान भी यहां सहायता करना बंद कर देते हैं। तो पैसे से तो कमजोर पहले ही चल रहे थे, ऊपर से करोनाकाल, यह सब बज्र के समान प्रहार हो गया। अम्मा की दशा बिगड़ती जा रही थी, पर जहां भी अम्मा का इलाज चल रहा था, वह सभी डाक्टर अपने-अपने घरों से इलाज कर रहे थे, लिहाजा मैंने भी अम्मा का इलाज आन-लाइन कराया, पर उन दवाओं से अम्मा को कोई फायदा नही हो रहा था, उल्टा उनकी दशा बिगड़ती जा रही थी। अप्रैल माह शूल की तरह चुभ रहा था, मैं रोज की भांति अम्मा को दिलासा देता रहता था। अप्रैल माह का अंतिम सप्ताह आते-आते अम्मा ने भोजन करना बिल्कुल बंद कर दिया, अब वह बड़ी मुश्किल से दूध का ही सेवन करतीं थीं, जिस कारण उन पर कमजोरी बुरी तरह हावी होने लगी थी। अम्मा अब बिस्तर पर लेटे-लेटे भावविहीन न जाने क्या-२ सोचती रहती। सब कुछ बिस्तर पर ही हो रहा था, तो मैं जब रात-दिन उठ-उठ कर काम करता, तो वह मुझे काम करते देख कर चुपचाप रोती रहती थी, मैं यह सब देखकर काफी दुखी होता, पर अम्मा की भावनाओं को सम्भाल नहीं पाता था।
एक दिन मैंने अम्मा से कहा कि अम्मा आप चाहें थोड़ा-थोड़ा करके ही सही, पर कुछ खा लिया करो, अन्यथा आप बहुत कमजोर होती जाओगी, इस पर आज अम्मा ने जो कहा, वह मैं सुनने के लिए तैयार नहीं था, उन्होंने मेरे सवाल के जवाब में कहा कि , "मुझे अब मर जाने दो ।" मैं अम्मा के मुख से यह शब्द सुनकर हैरानी से अम्मा को देख रहा था, और सोच रहा था, कि क्या यह मेरी वहीं अम्मा है, जो मुझे समय-समय पर मेरा हौसला बढ़ाया करती थी, जो सदा मेरी हिम्मत को बढ़ाने के लिए कहा करती थी कि "हारिये न हिम्मत, विसारिये न राम,"। अम्मा के इन शब्दों ने अम्मा को तो कमजोर कर ही दिया, पर मेरी शक्ति को भी अंदर से खोखला कर दिया था। मैं अम्मा को ऐसा कहने को आगे से मना कर रहा था, पर अम्मा के शब्द मेरे कानों में रह-रह कर गूंज रहे थे। कल तक जो अम्मा मेरे लिए प्रेरणा स्रोत थी, उनको मैं इस तरह असहाय नहीं देख पा रहा था। "मुझे अब मर जाने दो", शब्द जब उन्होंने मुझसे आगे न कहने के बावजूद भी मुझसे बार-बार कहें, तो मैं बेहद दुखी हो उठा।
मई माह प्रारंभ हो चुका था, अब अम्मा जो घर और बाहर की बातों को सुनकर अपनी राय या सलाह-मशुवरा करती थीं, वह एकदम बंद कर दिया। कमर दर्द उन पर इतना हावी हो चुका था, कि वह दर्द और सिर्फ दर्द में डुबी सी रहती थी। पूरे दिन भर जिन अम्मा की बातों से घर चहका करता था, आज उनकी दर्द की चीख़ों से पूरा घर एक अनजाने भय से कांप रहा था।
अम्मा के अब एक-एक दिन उनके नित नई कमजोरी के साथ बीतने लगे, 15 मई के आस-पास अम्मा ने मुझसे बोलना बिल्कुल बंद कर दिया, उस दिन से मुझे लगा कि मेरा सब कुछ छूट गया। अब जिन अम्मा के पास मुझसे बात करने का पुलिंदा हमेशा तैयार रहता था, पर अब अम्मा जब भी अपना मुंह खोलती, तो सिर्फ दर्द से कराहने के लिए। यह सब कुछ देखकर मुझे लगता, कि इतना सब देखकर मैं जीवित कैसे हूं। पर मैं भी अम्मा की भांति असहाय हो चला था। जो भी सम्भव करोना काल में अम्मा का इलाज और अपनी हैसियत के जो कुछ कर सकता था, वह कर रहा था। अम्मा को देखकर पिछली बार की तरह फिर से अम्मा के स्वस्थ होने की कामना कर रहा था, और एक बार फिर से चमत्कार की उम्मीद पाले बैठा था, पर इस बार मैं गलत भ्रम पाले बैठा था, चमत्कार कभी-कभी होते है, बार-बार नहीं।
23 मई की रात को अम्मा ने दूध पीना भी छोड़ दिया, जिस कारण उनके नसों से ग्लूकोज देना पड़ा, पर अगले दिन से मेरी अम्मा को सांस लेने में दिक्कत होने लगी, तो आनन-फानन में आक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम करना पड़ा। इलाज करने वाले व्यक्ति ने अम्मा की हालत काफी गंभीर बताई, और मुझे बताया कि अम्मा के बचने के चांस अब बेहद ही कम है, बस जो समय जा रहा है, बस वही जा रहा है। घटनाक्रम इतनी तेजी से बदल रहा था, समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें।
शेष आगे की my mother story part--4 में।
In the story so far, my Amma had fallen prey to paralysus. My mother who cared for me the most, and who never gave up on life, who was always my inspiration, she was in a helpless condition in front of me, I could not accept this condition of her, time. I was forced to watch the joke I had with him, but could not do anything.
Now whenever I sat near Amma, I used to be very depressed, Amma also started to be a little silent. I used to try to convince Amma by looking at Amma's position, but later I realized that I am explaining myself, not Amma. Perhaps my power of mind had become so weak, I was trying to handle it.
When I was sad like this, Amma asked me to sit with her one day, so I followed her and sat on the bed nearby. He turned his hair with my love and said, "Looks like you are feeling very sad, hey both my legs are moving, I am just not able to stand on them, I am trying, not today." So tomorrow I will start walking again. Then the time will come as before. Just you wait for the time, and do not be sad, hey I am sick, I am dead. I will be with you for about 10 years now. I was relieved to hear such positive things about Amma.
But what a man thinks is not, Amma's condition was getting worse day by day, now a new problem has arisen for me, Karona was in her youth in India, due to this the doctors in Agra almost There was a famine. No doctor was getting ready for treatment. I do not know about foreign countries, but if a person is seriously ill in India, and his financial condition is weak, then God also stops helping here. So we were already running weak with money, from time to time, it all hit like barge. Amma's condition was deteriorating, but wherever Amma was being treated, all those doctors were treating her from their homes, so I also got Amma treated online, but those medicines gave Amma any benefit. It was not happening, their condition was getting worse. The month of April was stinging like a prick, I used to comfort Amma like every day. By the last week of April, Amma stopped eating at all, now she used to consume milk with great difficulty, due to which her weakness began to dominate badly. Amma used to keep thinking about what to do without lying down in bed. Everything was happening on the bed, so when I would work every night and day, she would cry silently to see me working, I would be very sad to see all this, but could not handle Amma's feelings Was.
One day I told Amma that you want Amma to eat only a little, but eat something, otherwise you will become very weak, I was not ready to listen to what Amma said today, she asked my question. Said in response to that, "Let me die now.". I was amazed to see this word from Amma's mouth, and amazed Amma, and wondered if it was my own Amma, who used to encourage me from time to time, who always asked me to boost my courage. Used to say, "Defeat neither dare, differer nor Ram,". These words of Amma not only weakened Amma, but also made my power hollow inside. I was further refusing to say this to Amma, but Amma's words kept echoing in my ears. Till yesterday, Amma was a source of inspiration for me, I could not see her helpless like this. "Let me die now", the words when he said to me again and again despite not saying anything to me, I was very sad.
The month of May had started, now Amma, who used to listen to her opinions and advice from home and outside, stopped completely. The back pain had become so much dominated by her, that she used to remain immersed in pain and only pain. Amma, whose house used to chirp all day long, today the whole house was shivering with an unearthly fear due to their screams of pain.
Now every single day of Amma started to pass with her new weakness, Amma stopped speaking to me around 15 May, from that day I felt that I had missed everything. Now Amma, who had a bundle to talk to me, was always ready, whenever Amma would open her mouth, only to groan in pain. Seeing all this, I used to think how I am alive after seeing all this. But I also became helpless like Amma. Whatever was possible in the Karana period, Amma was doing the treatment and doing whatever she could to her status. Seeing Amma again like the last time, Amma wished to be well again, and once again was expecting miracles, but this time I was sitting in the wrong confusion, miracles happen sometimes, again and again. Not bar.
On the night of 23 May, Amma also stopped drinking milk, due to which she had to deliver glucose from her veins, but from the next day my Amma started having trouble breathing, so she had to arrange an oxygen cylinder quickly. The person treating Amma described the condition of Amma as very serious, and told me that Amma's chance of survival is now less, just the time is going, the same is going. Events were changing so fast, could not understand what to do now.
The rest in my mother story part - 4..
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