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Friday, June 11, 2021

बचपन

 


बात उन दिनों की है, जब मैं 9-10 साल का था, 1979-80 का समय था, उन दिनों अमिताभ बच्चन जी की फिल्मों का डंका बज रहा था। हम भी अछूते नहीं थे, लिहाजा जब भी मौका मिलता, एक-दो पिक्चर जरुर देख लेते थे।


फिल्मों के शौक के अलावा एक अन्य शौक क्रिकेट का कैसे और कब लगा, पता ही नहीं चला। उन दिनों मेरे पिताजी का ट्रांसफर करहल (मैनपुरी) हो गया, पिताजी ब्लाक में बड़े बाबू के पद पर कार्यरत थे। सो जहां-2 उनकी पोस्टिंग, वहां-2 उनका परिवार।


क्रिकेट का शौक धीरे-धीरे जुनून में कब परिवर्तित हो गया, इसका भी पता न चल सका। पर उन दिनों जब तक दो-चार बाल को चौके या छक्के के लिए नहीं भेजता था, पूरा दिन अधूरा सा लगता।


जब क्रिकेट का शौक बढ़ा, तो धीरे-धीरे हमारी टीम भी तैयार हो गई, सभी खिलाड़ी 8 से 10 वर्ष तक के थे।
एक दिन हम आपस में क्रिकेट खेल रहे थे, कि तभी काजी पाड़ा जो कि मुस्लिम बाहुल्य इलाका था, के कुछ लड़के क्रिकेट देखने आ गये, उन्होंने आते ही हमारा मज़ाक बनाना शुरू कर दिया। इस पर मैंने प्रतिकार किया, तो वह बोले, इतना अच्छा खेलते हो, तो हमारी भी टीम है, मैच कर लो, जो जीतेगा, उसे हारने वाली टीम से कार्क की बाल दी जायेगी। उस समय कार्क की बाल का भी चलन था, 3/- रुपए की आती थी। बात आन-बान की आ गई, तो मेरे साथियों ने भी मुझसे कहा, कि कर लो मैच, मैने इन्हें खेलते देखा है, बहुत बेकार खेलते हैं, इन्हें हम लोग मजा चखा देंगे। देखते ही देखते मैच आने वाले इतिवार को 10 बजे प्राइमरी स्कूल में खेलने का कार्यक्रम तय हो गया।
रविवार का दिन आया, तो हम दोनों टीमें वायदे के मुताबिक स्कूल में पहुंच गये और मैच शुरू हो गया।
विरोधी टीम काजी मौहल्ले की थी, लिहाजा उसमें सभी मुस्लिम लड़के थे, और हम सभी हिन्दू। पर जनाब हिन्दू मुस्लिम का मतलब शायद ही दोनों टीमों को आता हो, बस क्रिकेट का जुनून ही हम दोनों टीमों पर सवार था।
जब मैच शुरू हुआ तो एक लड़का था इमरान, इकहरा बदन, आकर्षक चेहरा, लम्बे बाल, जिसको मैंने पहली बार देखा था, इतनी छोटी सी उम्र में इतनी तेज बालिंग ? सचमुच उसकी गेदों के सामने हमारी टीम बिल्कुल बिखर गई और हम बहुत कम रनों पर आउट होते चले गये। रन इतने कम थे, जीत की गुंजाइश न बची थी। देखते ही देखते हम वह मैच हार गये। मैं आलराउंडर था, और टीम का कप्तान भी, पर मैं भी उस दिन कुछ न कर सका।
हम मैच हार चुके थे, हार का कारण वह लड़का इमरान था, पर उस दिन एक वाक्या हुआ, जो मुझे और इमरान को पास ले आया। हुआ यूं कि जब हमारी टीम हार गई, तो काजी मौहल्ले के लड़के मुझे और मेरी टीम को निशाना बनाकर हूटिंग करने लगे, जिससे हम लोग आहत हो रहे थे, तो यह बात इमरान को पसंद न आई, मुझे याद है उसकी उम्र भी 9-10 वर्ष की रही होगी, पर उसने आगे आकर अपने सभी साथियों को लताड़ना शुरू कर दिया, उसने अपने साथियों से कहा कि मैच हम जीत गये है, पर इंसानियत भी रखों। उसकी कहीं गई बातों से उसके साथियों पर इतना गहरा असर हुआ, कि टीम के सभी सदस्यों ने एकजुट होकर चिंतन किया, फिर हमसे मिलने आये, और हम सभी से सारी बोला, और हम लोगों के न चाहते हुए भी हमारी हारी हुई कार्क की गेंद हमें जबरदस्ती लौटा दी। साथ ही कहा कि आज से हम दोनों टीमें संग-2 खेला करेगी।


वह दिन सचमुच अद्भुत था, उस दिन के बाद से हम लोग कभी काजी मौहल्ले में और कभी काजी मौहल्ले के लड़के हमारे मैदान में खेलते। आगे चलकर हम दोनों टीमों ने कई मैच एक साथ दूसरी टीमों से खेलें। कुछ जीते, कुछ हारे भी।


अब तक हमारी और काजी मौहल्ले की एक टीम बन चुकी थी। अब मेरा आना जाना काजी मौहल्ले के सभी लड़को के घरों तक हो चुका था, उनके परिवार के लोग व्यक्तिगत रूप से परिचित होते गये। इमरान हमारा स्टार खिलाड़ी बन चुका था।


एक दिन हमारा मैच था, फील्ड में सभी समय से पहुंच गये, पर इमरान नहीं आया, चूंकि हमारा मैच अपने से कुछ बड़ी उम्र के लड़कों से हो रहा था, ऐसे में हमें उसकी बेहद आवश्यकता थी, जब काफी देर हो गई, और इमरान नहीं आया, तो टीम के लड़को ने मुझे उसके घर से लाने को कहा। मैंने गुस्से में अपनी साइकिल उठाई, और चल दिया इमरान के घर। रास्ते भर उसे क्या बुरा-भला बोलना है, सोचकर जा रहा था, इमरान को भी मेरी इस आदत का पता था, कि यदि जो बोला है, वो करो, नहीं तो बोलो मत।
इमरान के घर पहुंच कर मैंने गुस्से में कुंडी खटखटाई, बार-2 खटखटाने पर उसकी अम्मी दरवाजा खोलने आई, मैंने उन्हें देखकर नमस्ते की, वह मुझे जानती थी, पर मैं कभी इमरान के घर के अंदर नहीं गया था, यह पहला मौका था, जब इमरान की मां ने मुझे अंदर आने को कहा। इमरान के पिता का इंतकाल 4-5 वर्ष पूर्व हो चुका था, लिहाजा उसकी मां ही घर का कार्य (सिलाई मशीन ) करती थी। मैं इमरान को खोजते हुए घर के अंदर दाखिल हो गया। अंदर जाकर देखा, घर अस्त-व्यस्त व काफी टूटी-फूटी हालत में था। इमरान सिलाई मशीन के नीचे बैठकर कुछ कपड़ों के काज बना रहा था, जैसे ही उसने मुझे देखा तो दौड़कर मेरे पास आया, मेरे गुस्से को भांपकर धीरे से बोला कि संदीप भाई मुझे मालूम है आप गुस्सा है, पर मैं आज का मैच नहीं खेल सकूंगा। मैंने कहा क्यों? तो वह बोला कि यह कपड़े सिलकर ग्राहक को देना जरूरी है, और अभी घर जाकर रुपये भी लाना जरूरी है। मैं गुस्से में बोला तो यह शाम को कर लेते। इमरान इशारे से मुझे घर के बाहर ले आया, शायद अपनी मां के सामने कुछ न बोलना चाहता हो। बाहर आकर बोला संदीप भाई ये कपड़े सुबह ही आये है, घर में एक पैसा नहीं है, ये 12/- रुपए के सिलाई के कपड़े मां ने सुबह ही तैयार किये है, ग्राहक को जल्दी नहीं है, हमें पैसों की जल्दी है, कल अम्मी ने एक टेलर मास्टर से बात कर ली है, मैं अब पूरे दिन वहीं बैठूंगा, क्रिकेट अब कभी नहीं खेल पाऊंगा। तभी इमरान की मां अंदर से बाहर आई, और इमरान को देखकर बोली कि इमरान ग्राहक 10/- रुपए दें, तो कहना कि बहुत मेहनत और लागत लगती है, 12/- रुपये लेकर ही आना। 2/- रुपये भी बहुत होते है। इमरान अपनी मां को कह रहा था कि वह ऐसा ही करेगा।


मेरा इमरान से पिछले दो-तीन वर्षों से परिचय था, वह बेहद हंसमुख रहता था, आज से पहले उसने कभी भी अपने घर की परिस्थिति के बारे में मुझसे चर्चा नहीं की थी, बाद में मुझे अहसास हुआ कि वह मुझे क्यों अपने घर के अंदर नहीं ले जाता था। हम मिले तो कई बार थे, पर शायद वास्तव में रुवरु पहली बार हुये थे।

उस दिन जब मैं वापिस लौटा, तो मन पर एक बोझ लेकर लौटा। इमरान को उसके बाद मैंने कभी फील्ड पर नहीं देखा। उस दिन इमरान के बिना मैच तो हम जीत गये, पर लग रहा था, कि बहुत कुछ हार भी गये।

आज सोचता हूं कि न जाने कितने इमरान अपने बचपन को जी पाते है, या समय से पहले बड़े होने को मजबूर हो जाते हैं।



It is a matter of those days, when I was 9-10 years old, it was the time of 1979-80, in those days Amitabh Bachchan's films were ringing.  We were also not untouched, so whenever we got a chance, we would definitely watch a picture or two.

 Apart from the hobby of films, how and when did cricket become another hobby, it was not known.  In those days my father was transferred to Karhal (Mainpuri), father was working in the block as Bade Babu.  So where-2 his posting, there-2 his family.

 When the hobby of cricket gradually turned into a passion, it was not even known.  But in those days, unless he used to send two or four balls for fours or sixes, the whole day seemed incomplete.

 When the hobby of cricket grew, then gradually our team was also ready, all the players were in the age group of 8 to 10 years.

 One day we were playing cricket amongst ourselves, when some boys from Qazi Pada which was a Muslim majority area came to watch cricket, they started making fun of us as soon as they came.  I retaliated on this, then he said, if you play so well, then we also have a team, match, whoever wins, will be given a cork hair from the losing team.  At that time there was also a trend of kark hair, it used to cost Rs.3/-.  When it came to the talk, my colleagues also told me that do the match, I have seen them play, they play very uselessly, we will enjoy them.  On seeing the match, it was decided to play in the primary school at 10 o'clock on the coming Sunday.

 When Sunday came, we both teams reached the school as promised and the match started.

 The opposing team was from Qazi Mohalla, so there were all Muslim boys in it, and we were all Hindus.  But the meaning of Hindu Muslim hardly comes to both the teams, only the passion of cricket was riding on both of us.

 When the match started there was a boy Imran, single body, attractive face, long hair, which I saw for the first time, such a fast balling at such a young age?  In fact, our team was completely shattered in front of his balls and we went on getting out for very few runs.  The runs were so few, there was no chance of victory.  Soon we lost that match.  I was an all-rounder, and also the captain of the team, but I too could not do anything that day.

 We had lost the match, the reason for the defeat was that boy Imran, but a incident happened that day which brought me and Imran closer.  It happened that when our team lost, the boys of Qazi Mohalla started hooting targeting me and my team, due to which we were hurting, so Imran did not like this thing, I remember his age also 9-  She must have been 10 years old, but she came forward and started reprimanding all her teammates, she told her teammates that we have won the match, but also have humanity.  His words had such a profound effect on his teammates, that all the members of the team contemplated unitedly, then came to visit us, and spoke to all of us, and we did not want our lost cork ball  Forced us back.  Also said that from today both of us teams will play together-2.

 That day was really wonderful, from that day onwards we used to play in Qazi Mohalla and sometimes the boys of Qazi Mohalla used to play in our ground.  Later on, both the teams played many matches together with other teams.  Some won, some lost.

 By now we and Qazi Mohalla had formed a team.  Now I had come and gone to the homes of all the boys of Qazi Mohalla, their family members became personally acquainted.  Imran had become our star player.

 One day we had a match, reached the field on time, but Imran did not come, as we were having a match with some boys older than us, so we needed him very much, when it was too late, and Imran  did not come, then the team boys asked me to bring them from his house.  I picked up my cycle in anger, and went to Imran's house.  I was going all the way thinking about what to say to him, Imran also knew this habit of mine, that if you do what you have said, then don't speak.

 After reaching Imran's house, I knocked on the latch in anger, after knocking twice, his mother came to open the door, I said hello to him, she knew me, but I never went inside Imran's house, this was the first time,  When Imran's mother asked me to come inside.  Imran's father had passed away 4-5 years ago, so his mother used to do household work (sewing machine).  I entered inside the house searching for Imran.  When I went inside I saw that the house was in disrepair and in a very dilapidated condition.  Imran was sitting under the sewing machine making some clothespins, as soon as he saw me, he came running to me, sensing my anger, he said slowly that Sandeep Bhai, I know you are angry, but I will not be able to play today's match.  .  I said why?  So he said that it is necessary to sew these clothes and give them to the customer, and now it is necessary to go home and bring money.  If I spoke in anger, I would have done it in the evening.  Imran took me out of the house with a gesture, maybe he does not want to speak anything in front of his mother.  Came out and said Sandeep Bhai, these clothes have come only in the morning, there is no money in the house, mother has prepared these 12/- sewing clothes in the morning itself, the customer is not in a hurry, we are in a hurry for money, tomorrow mother  Has spoken to a tailor master, I will sit there all day now, will never be able to play cricket anymore.  Then Imran's mother came out from inside, and seeing Imran said that Imran should give Rs 10 / - to the customer, then to say that it takes a lot of hard work and cost, to come with Rs 12 / - only.  2/- rupees is also a lot.  Imran was telling his mother that he would do the same.

 I was introduced to Imran for the last two-three years, he was very cheerful, before today he had never discussed with me about the situation in his house, later I realized why he kept me inside his house.  would not take  We had met many times, but maybe it was actually Ruvaru for the first time.


 When I returned that day, I returned with a burden on my mind.  After that I never saw Imran on the field.  That day we won the match without Imran, but it seemed that we lost a lot.


 Today I think that not knowing how many Imran are able to live their childhood, or are forced to grow up prematurely.

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