अम्मा की दूसरी पुन्यतिथि पर विशेष --
बात आज से लगभग पांच वर्ष पूर्व की होगी, अम्मा के पास एक बक्सा (संदूक) रहता था, जिसे हम कई सालों से देखते आ रहे थे, हालांकि उनकी स्वयं की अलवारी भी थी, पर अम्मा न जाने क्यों अपना सामान बक्से में ही रखना पसंद करती थी। मैं जब भी उस बक्से को देखता, तो बक्से को लेकर मेरी व अम्मा की तकरार हो जाती, मैं अम्मा से कहता कि अब बक्से का जमाना नहीं रहा, किसी कबाड़ी को बेच देते है ? अम्मा थोड़ी देर तक तो मुझे चुपचाप सुनती रहती, पर बात ज्यादा बढ़ जाती, तो मुझे लाल-लाल आंखें भी दिखा देती थी । हार थक कर अंत में यहीं कहती, अच्छा ठीक है, जब मैं मर जाऊं, तो तुम इसे बेच देना। हालांकि उस बक्से में ऐसा कुछ नहीं रहता था, जो मुझे मालूम न हो, पर फिर भी मुझे अम्मा के इस "बक्से-प्रेम" के कारण हर बार उनके सामने आत्मसमर्पण करना पड़ता था।
अब चूंकि बात पांच साल पहले की चल रही थी, तो उस बक्से में अम्मा की कई साड़ियां भी रहती थी। अम्मा उनमें से एक-एक करके सभी साड़ियों को पहन चुकी थी, सिवाय एक के। मैं अम्मा से कहता, कि इसे भी पहन डालो, तो वह कहती, कि ये बहुत भारी साड़ी है, जब भी मौका मिलेगा, पहन लूंगी। फिर उनकी उम्र भी 83-84 वर्ष की हो चली थी, इसलिए शायद उन्हें थोड़ा असहज लगता होगा।
ऐसा करते-करते एक से दो वर्ष गुजर गये। मैं भी जब-जब उस साड़ी को देखता, तब-तब अम्मा को उसे पहनने को निरंतर कहता रहता, और अम्मा भी हर बार की तरह "ठीक है, पहन लूंगी", कहकर साड़ी को बक्से में बंद कर देती।
करीब तीन साल पहले अम्मा गम्भीर रूप से बीमार पड़ गई, करीब पांच-छः माह इलाज में ही बीत गये। समय के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य में सुधार आने लगा। जब वह थोड़ा स्वस्थ हो गई, तो एक दिन उन्होंने फिर वही बक्सा खोला, अचानक मेरी नजर फिर से उसी साड़ी पर पड़ी, जिसे देखकर मैंने अम्मा से पुनः कहा कि अम्मा अब इसको पहनने का मुहूर्त कब निकलेगा ? इस बात पर अम्मा आज गुस्सा नहीं हुई, बल्कि मुस्कुरा दी, फिर बोली ठीक है, तुम बार-बार कहते रहते हो, तो मैं इसे जल्दी ही पहन ही लूंगी। बात आयी-गयी हो गई।
उन्हीं दिनों अम्मा के कहने पर मैं तुलसी का एक पौधा लेकर आया, जिसे अम्मा ने स्वयं अपने हाथों से गमले में लगाया । चूंकि अम्मा धार्मिक विचारों की थी, इसलिए उन्हें तुलसी के पौधे से कुछ विशेष लगाव रहता था।
सभी कुछ फिर से ठीक हो गया, जिंदगी अपनी रफ्तार से फिर से दौड़ने लगी। सुख के अभी क्षणिक समय ही बीते होगे, कि अम्मा लगभग ढाई साल पहले पैरालिसिस की शिकार हो गई। अम्मा हार्ट फेलियर, सांस व किडनी समस्या से तो पहले से ही जूझ रही थी, ऊपर से एक नई बीमारी ने अम्मा को अंदर से तोड़कर रख दिया। कुछ दिन तक तो वो मेरे कहने पर साहस करती रही, पर धीरे-धीरे करके वो भी टूटने लगा। एक समय ऐसा भी आया, जब मैं उन्हें ढांढस बंधाया करता था, और वो निढाल होकर मुझे चुपचाप सुनती रहती।एक समय बाद मैंने ये महसूस किया, ये शायद मैं अब उन्हें नहीं समझा रहा हूं, बल्कि अपने आपको ही तसल्ली दे रहा हूं।
समय भी अम्मा के विपरीत था, उस समय देश में लाकडाउन लगा था, जिस कारण अम्मा का समुचित इलाज अच्छे चिकित्सकों से न हो सका। एकसाथ इतनी बीमारियों से अम्मा भला कब तक अकेली लड़ती, और कब तक सहन करती। आखिरकार लड़ते-लड़ते उनकी शक्तियों ने जबाव दे दिया, और वो 27 मई 2020 को हमेशा-हमेशा के लिए गहरी चिरनिंद्रा में चली गई।
अब समय-चक्र देखिए, जब अम्मा को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने का वक्त आया, तो नये वस्त्र पहनाने की आवश्यकता पड़ी, तो अचानक मुझे उनके बक्से में पड़ी उसी साड़ी की याद आ गई, मैं भरे मन से उठा, और जाकर उस बक्से को खोला, उस बक्से से अम्मा के हाथ से रखी उस साड़ी को बक्से से निकाला।
कहां तो अम्मा मुझसे पिछले कई समय से इस साड़ी को न पहनने के लिए टाल-मटोल करती रहती थी, पर आज वो एकदम खामोश थी, उन्होंने साड़ी पहनते वक्त मुझसे कोई प्रतिकार न किया, न गुस्सा हुई। बस चुपचाप साड़ी पहन ली।
बाद में हिन्दू मान्यता के अनुसार तुलसी के पत्ते उनके मुंह में रखे गये, ये वही तुलसी का पौधा था, जो उन्होंने कभी अपने हाथों से रोपा था।
आज अम्मा से बिछड़े ठीक दो साल हो गये, अम्मा जिस बक्से के लिए मुझे हमेशा डांटती आई थी, वो बक्सा आज भी रखा है, पर तुलसी का वो पौधा अब नहीं रहा। एक समय मैं अम्मा से उस बक्से को कबाड़ में बेचने की वकालत करता रहता था, पर अब सोचता हूं, कि अच्छा हो, ये मेरे मरने के बाद ही बिके।
It will be about five years ago today, Amma used to have a box, which we had been seeing for many years, although she also had her own wardrobe, but Amma did not know why to keep her things in the box. Liked it Whenever I would see that box, I and Amma would have an argument about the box, I would tell Amma that now the era of boxes is no more, we sell it to some junk? Amma used to listen to me silently for a while, but if the talk got too much, she used to show me red-red eyes. The necklace would get tired and say here at the end, okay, when I die, you sell it. Although there was nothing in that box, which I did not know, but still I had to surrender to Amma every time because of this "box-love".
Now since it was going on five years ago, there were many saris of Amma in that box. Amma had put on all the sarees one by one except one. I would tell Amma to wear it too, she would say that this is a very heavy sari, I will wear it whenever I get a chance. Then he was also 83-84 years old, so maybe he would have felt a little uncomfortable.
One or two years passed by doing this. Whenever I saw that saree, I would constantly tell Amma to wear it, and Amma would put the saree in the box saying "Okay, I will wear it" like every time.
One or two years passed by doing this. Whenever I saw that saree, I would constantly tell Amma to wear it, and Amma would put the saree in the box saying "Okay, I will wear it" like every time.
About three years ago Amma fell seriously ill, about five-six months passed in treatment. Over time, his health started improving. When she got a little better, then one day she opened the same box again, suddenly my eyes again fell on the same sari, seeing which I again asked Amma that Amma now when will the Muhurta to wear it come out? Amma did not get angry on this thing today, but smiled, then said okay, if you keep saying this again and again, then I will wear it soon. The matter has come and gone.
In those days, at the behest of Amma, I brought a Tulsi plant, which Amma herself planted in a pot with her own hands. Since Amma was of religious views, she had some special attachment to the Tulsi plant.
Everything went well again, life started running again at its own pace. Only momentary times of happiness must have passed, that Amma became a victim of paralysis about two and a half years ago. Amma was already struggling with heart failure, respiratory and kidney problems, a new disease from above broke Amma from inside. For a few days, she kept daring at my behest, but gradually she also started breaking down. There came a time when I used to console her, and she would listen silently to me. After a while I realized that maybe I am not explaining to her anymore, but I am calming myself.
Time was also opposite to Amma, at that time there was a lockdown in the country, due to which Amma could not get proper treatment from good doctors. How long would Amma fight alone with so many diseases at once, and for how long would she endure? Eventually, her powers reciprocated while fighting, and she went into deep sleep forever on 27 May 2020.
Now look at the cycle of time, when the time came to take Amma to the funeral, there was a need to put on new clothes, then suddenly I remembered the same sari lying in her box, I got up with a full heart, and went to that Opened the box, took out the sari kept by Amma's hand from that box.
Where Amma used to avoid me for not wearing this sari for many years, but today she was very silent, she did not retaliate or get angry with me while wearing the sari. Simply put on the saree silently.
Later, according to Hindu belief, Tulsi leaves were kept in his mouth, this was the same Tulsi plant, which he had once planted with his own hands.
Today it has been exactly two years that Amma separated from me, the box for which Amma always scolds me, that box is kept even today, but that Tulsi plant is no more. At one time I used to plead with Amma to sell that box as junk, but now I think that it should be better, it will be sold only after my death.
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