किसी राजनैतिक पार्टी को समर्थन करना कोई बुरी बात नहीं है, वोट देते वक्त आपको किसी एक को तो चुनना ही होता है, जो आपके अधिकार व कर्तव्य दोनों में आता है । अब बुरा क्या है ? तो जनाब बुरा है, किसी भी राजनैतिक पार्टी की अंधभक्ती या गुलामी करना।
यदि आप किसी राजनैतिक पार्टी से जुड़े हुये या राजनैतिक स्तर पर अपना कैरियर तलाश रहे है, तो आपकी भूमिका एक आम नागरिक से इतर हो सकती है। ज्यादातर देखा गया है कि ऐसे लोग राजनैतिक लाभ पाने की इच्छाएं मन में दबाये हुए एक अलग ही सतरंगी दुनिया में खोये रहते है, इसलिए ऐसे लोग पार्टी द्वारा लिए गये गलत निर्णयों पर कदाचित खामोश रहते है। हम इनकी विवशताओं को बखूबी जानते व समझते है, ऐसे लोग चाह कर भी पार्टी गाइडलाइन को पार नहीं करते। कुछ लोग वास्तव में भिन्न प्रकार के समाज सेवी भी होते है, ऐसे व्यक्ति अन्याय होता देख न केवल अपनी आवाज बुलंद करते है, बल्कि देश को भी इससे लाभ पहुंचाते है। हालांकि वास्तविकता यह भी है, कि ऐसे लोग अब सिर्फ मुट्ठी भर रह गये है।
यदि आप किसी राजनैतिक पार्टी के साथ है, तो सभी कुछ चलेगा, परन्तु जब आप देश के एक आम नागरिक होते है, तो आपके देशहित में नियम व कर्तव्य दोनों ही बदल जाते है। बेशक आप सरकारों के अच्छे कार्यों की दिल खोलकर प्रशंसा कर सकते है, परन्तु जब देश चलाने के लिए सरकारें गलत निर्णयों का सहारा लेने लगें, तो आप सिर्फ एक तमाशबीन बनकर नहीं रह सकते। यहां आपको अपनी भावनाओं को काबू में रखकर देशहित में अपनी खामोशी को तोड़ना होगा।
सरकार द्वारा उठाये गये अच्छे कदमों से जहां देश की प्रगति होती है, वहीं गलत निर्णयों से देश को भारी खामियाजा भी भोगना पड़ता है। सरकार के गलत कार्यों पर आपकी एक खामोशी कई हजार खामोशियों को जन्म देती है, आपकी यहीं खामोशी देश की भी खामोशी बन जाती है। गलत देखकर भी खामोश बने रहने का फायदा हमारी सरकारों ने समय-समय पर वखूबी उठाया है।
इतिहास गवाह है कि महाभारत काल में भरी सभा में द्रौपदी के वस्त्र हरण पर भीष्म पितामह सहित अन्य लोगों की सिर्फ एक चुप्पी (खामोशी) ने इतिहास को न केवल शर्मसार किया, बल्कि यह लोग ताउम्र इस वेदना से उभर न सकें।
लोकतंत्र जनता को मालिक बनने का मौका देता है, तो हम किसी भी राजनैतिक पार्टी के अंधभक्त या गुलाम क्यों बनें ? पार्टी हित का तो वो लोग सोचे, जो पार्टी से जुड़े हो।
सच तो यह है, भारत सदियों पुरानी गुलामी से तो आजाद हो गया, परन्तु आज धीरे-धीरे ही सही, हमारे देश के नागरिक चंद राजनैतिक पार्टियों के गुलाम भी बनते जा रहे है। यदि इससे हम लोग जल्दी ही बाहर नहीं निकलें, तो इन राजनैतिक पार्टियों की गुलामी करने की प्रवृत्ति हमारी नसों में खून बनकर बहने लगेगी।
मालिक जब अपने आपको नौकर ही समझने लगे, तो कसूरवार कौन ? दुर्भाग्य यह है, कि आजादी के बाद से राजनैतिक पार्टियां यह खेल जनता के साथ वखूबी खेल रही है। जनता मालिक होकर भी इन राजनैतिक पार्टियों के चंगुल में फंसकर अंधभक्त व गुलाम बनती जा रही है।
यहां मेरे कहने का मतलब देश के विरुद्ध कोई बगावत करने का नहीं है, बल्कि जहां देशहित में सरकार के विरुद्ध बोलना जरूरी हो, वहां अपनी खामोशी तोड़ना भर है। गलत देखते हुए भी आपकी बरती गई एक खामोशी आपको ही नहीं, बल्कि समूचे देश को भी भारी नुकसान पहुंचाती है। श्रीलंका इसका ज्वलंत उदाहरण है। माना सिर्फ आपकी एक आवाज से कुछ खास न हो पायेगा, पर जब एक साथ कई आवाजें मिलेगी, तो परिणाम अच्छे मिलते भी देर न लगेगी। टेलीविजन पर आपने अवश्य सुना होगा, "मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बनें हमारा।"
सरकारें आती रहेगी, जाती रहेगी, पर वर्तमान में सरकार के गलत निर्णयों पर आपकी खामोशी या अंधभक्ती देश पर भारी पड़ सकती है। मैं नहीं चाहता कि कल आपके साथ भी कुछ ऐसा हो, कि जब आप भविष्य काल में अपने इतिहास के पन्ने पलट रहे हो, तो आपके दिल में बार-बार यहीं कसक रह जाये, कि "काश हम भी कुछ बोले होते।"
English
silences
Supporting any political party is not a bad thing, while voting, you have to choose one, which comes in both your right and duty. What's worse now? So sir, it is bad, to do blind devotion or slavery to any political party.
If you are associated with a political party or looking for a career at the political level, then your role may be different from that of a common citizen. Mostly it has been seen that such people are lost in a different sartorial world with their desires for political gains, so such people are probably silent on the wrong decisions taken by the party. We know and understand their compulsions very well, such people do not even cross the party guideline even if they want. Some people are actually different types of social workers too, seeing injustice being done, such people not only raise their voice, but also benefit the country from it. However, the reality is also that such people are now only a handful.
If you are with any political party, then everything will work, but when you are a common citizen of the country, both the rules and duties change in the interest of your country. Of course, you can praise the good work of the governments openly, but when the governments start resorting to wrong decisions to run the country, then you cannot remain just a spectator. Here you have to break your silence in the interest of the country by keeping your emotions under control.
While the country progresses due to the good steps taken by the government, the country also has to bear the brunt of the wrong decisions. Your one silence on the wrong actions of the government gives rise to thousands of silences, your silence here becomes the silence of the country as well. Our governments have from time to time taken the advantage of remaining silent even after seeing the wrong.
History is witness that only a silence (silence) of other people including Bhishma Pitamah on the removal of Draupadi's clothes in the assembly filled during the Mahabharata period not only put the history to shame, but these people could not emerge from this pain for life.
Democracy gives chance to the people to be the master, so why should we become blind devotees or slaves of any political party? Those people who are associated with the party should think of the interest of the party.
The truth is, India got freedom from the age-old slavery, but today, gradually, the citizens of our country are also becoming slaves of few political parties. If we do not come out of this soon, then the slavery of these political parties will start flowing like blood in our veins.
When the master starts thinking of himself as a servant, then who is to blame? Unfortunately, since independence, political parties have been playing this game well with the public. Despite being the master, people are becoming blind devotees and slaves by getting caught in the clutches of these political parties.
What I mean here is not to revolt against the country, but to break our silence where it is necessary to speak against the government in the interest of the country. Seeing the wrong one, the silence taken by you not only causes great harm to you, but also to the entire country. Sri Lanka is a vivid example of this. Admittedly, only one voice of yours will not do anything special, but when you get many voices together, it will not take long to get good results. You must have heard on television, "Mile sur mera yours, toh sur bane humara."
Governments will come and go, but at present, your silence or superstition on the wrong decisions of the government can overwhelm the country. I don't want anything like this to happen to you tomorrow, that when you are turning the pages of your history in the future, then again and again there will be a tightness in your heart, that "I wish we too had said something."
यदि आप किसी राजनैतिक पार्टी से जुड़े हुये या राजनैतिक स्तर पर अपना कैरियर तलाश रहे है, तो आपकी भूमिका एक आम नागरिक से इतर हो सकती है। ज्यादातर देखा गया है कि ऐसे लोग राजनैतिक लाभ पाने की इच्छाएं मन में दबाये हुए एक अलग ही सतरंगी दुनिया में खोये रहते है, इसलिए ऐसे लोग पार्टी द्वारा लिए गये गलत निर्णयों पर कदाचित खामोश रहते है। हम इनकी विवशताओं को बखूबी जानते व समझते है, ऐसे लोग चाह कर भी पार्टी गाइडलाइन को पार नहीं करते। कुछ लोग वास्तव में भिन्न प्रकार के समाज सेवी भी होते है, ऐसे व्यक्ति अन्याय होता देख न केवल अपनी आवाज बुलंद करते है, बल्कि देश को भी इससे लाभ पहुंचाते है। हालांकि वास्तविकता यह भी है, कि ऐसे लोग अब सिर्फ मुट्ठी भर रह गये है।
यदि आप किसी राजनैतिक पार्टी के साथ है, तो सभी कुछ चलेगा, परन्तु जब आप देश के एक आम नागरिक होते है, तो आपके देशहित में नियम व कर्तव्य दोनों ही बदल जाते है। बेशक आप सरकारों के अच्छे कार्यों की दिल खोलकर प्रशंसा कर सकते है, परन्तु जब देश चलाने के लिए सरकारें गलत निर्णयों का सहारा लेने लगें, तो आप सिर्फ एक तमाशबीन बनकर नहीं रह सकते। यहां आपको अपनी भावनाओं को काबू में रखकर देशहित में अपनी खामोशी को तोड़ना होगा।
सरकार द्वारा उठाये गये अच्छे कदमों से जहां देश की प्रगति होती है, वहीं गलत निर्णयों से देश को भारी खामियाजा भी भोगना पड़ता है। सरकार के गलत कार्यों पर आपकी एक खामोशी कई हजार खामोशियों को जन्म देती है, आपकी यहीं खामोशी देश की भी खामोशी बन जाती है। गलत देखकर भी खामोश बने रहने का फायदा हमारी सरकारों ने समय-समय पर वखूबी उठाया है।
इतिहास गवाह है कि महाभारत काल में भरी सभा में द्रौपदी के वस्त्र हरण पर भीष्म पितामह सहित अन्य लोगों की सिर्फ एक चुप्पी (खामोशी) ने इतिहास को न केवल शर्मसार किया, बल्कि यह लोग ताउम्र इस वेदना से उभर न सकें।
लोकतंत्र जनता को मालिक बनने का मौका देता है, तो हम किसी भी राजनैतिक पार्टी के अंधभक्त या गुलाम क्यों बनें ? पार्टी हित का तो वो लोग सोचे, जो पार्टी से जुड़े हो।
सच तो यह है, भारत सदियों पुरानी गुलामी से तो आजाद हो गया, परन्तु आज धीरे-धीरे ही सही, हमारे देश के नागरिक चंद राजनैतिक पार्टियों के गुलाम भी बनते जा रहे है। यदि इससे हम लोग जल्दी ही बाहर नहीं निकलें, तो इन राजनैतिक पार्टियों की गुलामी करने की प्रवृत्ति हमारी नसों में खून बनकर बहने लगेगी।
मालिक जब अपने आपको नौकर ही समझने लगे, तो कसूरवार कौन ? दुर्भाग्य यह है, कि आजादी के बाद से राजनैतिक पार्टियां यह खेल जनता के साथ वखूबी खेल रही है। जनता मालिक होकर भी इन राजनैतिक पार्टियों के चंगुल में फंसकर अंधभक्त व गुलाम बनती जा रही है।
यहां मेरे कहने का मतलब देश के विरुद्ध कोई बगावत करने का नहीं है, बल्कि जहां देशहित में सरकार के विरुद्ध बोलना जरूरी हो, वहां अपनी खामोशी तोड़ना भर है। गलत देखते हुए भी आपकी बरती गई एक खामोशी आपको ही नहीं, बल्कि समूचे देश को भी भारी नुकसान पहुंचाती है। श्रीलंका इसका ज्वलंत उदाहरण है। माना सिर्फ आपकी एक आवाज से कुछ खास न हो पायेगा, पर जब एक साथ कई आवाजें मिलेगी, तो परिणाम अच्छे मिलते भी देर न लगेगी। टेलीविजन पर आपने अवश्य सुना होगा, "मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बनें हमारा।"
सरकारें आती रहेगी, जाती रहेगी, पर वर्तमान में सरकार के गलत निर्णयों पर आपकी खामोशी या अंधभक्ती देश पर भारी पड़ सकती है। मैं नहीं चाहता कि कल आपके साथ भी कुछ ऐसा हो, कि जब आप भविष्य काल में अपने इतिहास के पन्ने पलट रहे हो, तो आपके दिल में बार-बार यहीं कसक रह जाये, कि "काश हम भी कुछ बोले होते।"
English
silences
Supporting any political party is not a bad thing, while voting, you have to choose one, which comes in both your right and duty. What's worse now? So sir, it is bad, to do blind devotion or slavery to any political party.
If you are associated with a political party or looking for a career at the political level, then your role may be different from that of a common citizen. Mostly it has been seen that such people are lost in a different sartorial world with their desires for political gains, so such people are probably silent on the wrong decisions taken by the party. We know and understand their compulsions very well, such people do not even cross the party guideline even if they want. Some people are actually different types of social workers too, seeing injustice being done, such people not only raise their voice, but also benefit the country from it. However, the reality is also that such people are now only a handful.
If you are with any political party, then everything will work, but when you are a common citizen of the country, both the rules and duties change in the interest of your country. Of course, you can praise the good work of the governments openly, but when the governments start resorting to wrong decisions to run the country, then you cannot remain just a spectator. Here you have to break your silence in the interest of the country by keeping your emotions under control.
While the country progresses due to the good steps taken by the government, the country also has to bear the brunt of the wrong decisions. Your one silence on the wrong actions of the government gives rise to thousands of silences, your silence here becomes the silence of the country as well. Our governments have from time to time taken the advantage of remaining silent even after seeing the wrong.
History is witness that only a silence (silence) of other people including Bhishma Pitamah on the removal of Draupadi's clothes in the assembly filled during the Mahabharata period not only put the history to shame, but these people could not emerge from this pain for life.
Democracy gives chance to the people to be the master, so why should we become blind devotees or slaves of any political party? Those people who are associated with the party should think of the interest of the party.
The truth is, India got freedom from the age-old slavery, but today, gradually, the citizens of our country are also becoming slaves of few political parties. If we do not come out of this soon, then the slavery of these political parties will start flowing like blood in our veins.
When the master starts thinking of himself as a servant, then who is to blame? Unfortunately, since independence, political parties have been playing this game well with the public. Despite being the master, people are becoming blind devotees and slaves by getting caught in the clutches of these political parties.
What I mean here is not to revolt against the country, but to break our silence where it is necessary to speak against the government in the interest of the country. Seeing the wrong one, the silence taken by you not only causes great harm to you, but also to the entire country. Sri Lanka is a vivid example of this. Admittedly, only one voice of yours will not do anything special, but when you get many voices together, it will not take long to get good results. You must have heard on television, "Mile sur mera yours, toh sur bane humara."
Governments will come and go, but at present, your silence or superstition on the wrong decisions of the government can overwhelm the country. I don't want anything like this to happen to you tomorrow, that when you are turning the pages of your history in the future, then again and again there will be a tightness in your heart, that "I wish we too had said something."
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