Although Manglu was the fourth fail, but somehow managed to count till "91". That's why sometimes he used to grab books to intimidate the children of the neighborhood. One day he came across the story of Munshi Premchand's "Hamid", while reading it his crocodile tears started flowing. Even inside him, the desire to do something for the mother started tumbling. What was it then, he tiredly stole the notes from the sleeping mother's box, and went to the fair.
The fair of the world, the girl in the fair, Manglu got so lost in the fair, that it became evening from morning. Turra on him his chatori habit? For this very reason the stolen money was also disposed of. Manglu started thinking, how to get "tongs" for mother now?
That's why Manglu's eyes fell on a shopkeeper sitting in front, many tongs were kept near him. Now Manglu did not have money, so he found an opportunity in this disaster. He reached the shopkeeper with tongs, and started cooking it by saying his "Mann Ki Baat". At first the shopkeeper kept ignoring Manglu, but when he became red after getting cooked, he angrily threw a pair of tongs at Manglu. Manglu was waiting for this moment, he immediately picked up the tongs and galloped away. Before the shopkeeper could understand anything, he disappeared from the eyes in the blink of an eye.
When Manglu reached home, he saw that the mother was cursing her fate, clutching her head, seeing the missing money in the open box. Manglu was a first class cheater, even after seeing him he said ignoring ----- Mother.... Mother.... Mother, look, what have I brought for you? As soon as he said this, he presented the "tongs" in front of his mother from behind his back. And lost in the imagination, that his mother will also hug him like Premchand's character? He was able to think so much, that only then he started hearing the threat of mother's tongs on both his "balls". Mother was going to scream, damn, pears, there were already so many here, so what was the need to bring one more? Manglu could not understand, where did the mistake happen? At the moment he was listening and counting the threats of his mother's tongs and "91" abuses on his reddened "balls".
Just after that day Manglu decided that he would never forgive his mother from the bottom of his heart. The very next day, before dawn, he absconded with all the ornaments of the mother.
हिन्दी रुपांतरण
वैसे तो मंगलू चौथी फेल था, पर "91" तक की गिनती किसी तरह गिन ही लेता था। इसलिए कभी-कभी आस-पड़ोस के बच्चों पर धाक जमाने के लिए किताबें भी पकड़ लिया करता था। एक दिन उसे मुंशी प्रेमचंद की "हामिद" वाली कहानी हाथ लग गई, पढ़ते-पढ़ते उसके मगरमच्छी आंसू बहने लगे। उसके अंदर भी मां के लिए कुछ करने की इच्छा के कीड़े कुलबुलाने लगे। बस फिर क्या था, उसने थक कर चूर सो रही मां के बक्से से नोट चुराए, और चल दिया मेला।
दुनियां का मेला, मेले में लड़की, देखते-देखते मंगलू मेले में इतना खो गया, कि सुबह से शाम हो गई। उस पर तुर्रा उसकी चटोरी आदत ? कमबख्त इसी कारण चुराये पैसे भी निपट गये। मंगलू सोचने लगा, कि अब मां के लिए "चिमटा" कैसे लें ?
तभी मंगलू की नजर सामने बैठे एक दुकानदार पर पड़ी, उसके पास कई चिमटें रखे थे। अब मंगलू के पास रुपए तो थे नहीं, लिहाजा उसे इस आपदा में एक अवसर सूझा। वह चिमटें वाले दुकानदार के पास पहुंचा, और उसे अपने "मन की बात" कहकर पकाने लगा। पहले तो दुकानदार मंगलू को इग्नोर करता रहा, पर जब वह पककर लाल हो गया, तो गुस्से में मंगलू को चिमटा फेंककर मारा। मंगलू तो इसी पल का इंतजार कर रहा था, वह तुरंत उस चिमटें को उठाकर सरपट दौड़ लिया। इससे पहले कि दुकानदार कुछ समझ पाता, वह पलक झपकते ही आंखों से ओझल हो गया।
मंगलू जब घर पहुंचा, तो देखा कि मां खुले बक्से में, गायब रुपए देखकर, सिर पकड़े, अपनी किस्मत को कोस रही थी। मंगलू तो अव्वल दर्जे का ढीठ था, देखकर भी अनदेखा कर बोला -----मां....मां....मां, देखो, मैं आपके लिए क्या लाया ? इतना कहते ही उसने अपने पीठ पीछे से "चिमटें" को मां के सामने पेश कर दिया। और इस कल्पना में खो गया, कि उसकी मां भी प्रेमचंद के किरदार के भांति उसको गले लगा लेगी ? वह इतना सोच ही पाया था, कि तभी उसे अपने दोनों "गोलों" पर मां के चिमटें की धमक सुनाई देने लगी। मां चीखें जा रही थी, कमबख्त, नाशपीटे, यहां पहले ही इतने थे, तो एक और लाने की जरूरत क्या थी? मंगलू समझ नहीं पा रहा था, गलती कहां हो गई ? फिलहाल वह अपने लाल होते "गोलों" पर मां के चिमटों की धमक व "91" गालियां सुन व गिन रहा था।
दुनियां का मेला, मेले में लड़की, देखते-देखते मंगलू मेले में इतना खो गया, कि सुबह से शाम हो गई। उस पर तुर्रा उसकी चटोरी आदत ? कमबख्त इसी कारण चुराये पैसे भी निपट गये। मंगलू सोचने लगा, कि अब मां के लिए "चिमटा" कैसे लें ?
तभी मंगलू की नजर सामने बैठे एक दुकानदार पर पड़ी, उसके पास कई चिमटें रखे थे। अब मंगलू के पास रुपए तो थे नहीं, लिहाजा उसे इस आपदा में एक अवसर सूझा। वह चिमटें वाले दुकानदार के पास पहुंचा, और उसे अपने "मन की बात" कहकर पकाने लगा। पहले तो दुकानदार मंगलू को इग्नोर करता रहा, पर जब वह पककर लाल हो गया, तो गुस्से में मंगलू को चिमटा फेंककर मारा। मंगलू तो इसी पल का इंतजार कर रहा था, वह तुरंत उस चिमटें को उठाकर सरपट दौड़ लिया। इससे पहले कि दुकानदार कुछ समझ पाता, वह पलक झपकते ही आंखों से ओझल हो गया।
मंगलू जब घर पहुंचा, तो देखा कि मां खुले बक्से में, गायब रुपए देखकर, सिर पकड़े, अपनी किस्मत को कोस रही थी। मंगलू तो अव्वल दर्जे का ढीठ था, देखकर भी अनदेखा कर बोला -----मां....मां....मां, देखो, मैं आपके लिए क्या लाया ? इतना कहते ही उसने अपने पीठ पीछे से "चिमटें" को मां के सामने पेश कर दिया। और इस कल्पना में खो गया, कि उसकी मां भी प्रेमचंद के किरदार के भांति उसको गले लगा लेगी ? वह इतना सोच ही पाया था, कि तभी उसे अपने दोनों "गोलों" पर मां के चिमटें की धमक सुनाई देने लगी। मां चीखें जा रही थी, कमबख्त, नाशपीटे, यहां पहले ही इतने थे, तो एक और लाने की जरूरत क्या थी? मंगलू समझ नहीं पा रहा था, गलती कहां हो गई ? फिलहाल वह अपने लाल होते "गोलों" पर मां के चिमटों की धमक व "91" गालियां सुन व गिन रहा था।
बस उस दिन के बाद मंगलू ने तय कर लिया, कि वह मां को कभी दिल से माफ नहीं करेगा। अगले ही दिन, भोर होने से पहले, वह मां के सारे गहने लेकर फरार हो गया।
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