Brij Bhushan Sharan while talking to the media emphasized on two words. First--- My status is 50 thousand crores.
Second--- Akhilesh Yadav and I have a childhood association.
Both these sentences are very important politically. He has not said these two sentences to anyone else, but in an indirect way, he has said only for BJP. Its echo must have reached the ears of the BJP very well.
The existence of any political party depends on "note" (funding) and "vote". Brij Bhushan's boasting of his position tells that what is the BJP going to lose in his absence?
Describing his childhood relationship with Akhilesh Yadav, he played another bet to tell BJP that if not you, then "Samajwadi Party" is my next destination.
Presently, the situation of BJP has become like a snake-charchunder. He knows very well that Brij Bhushan has a good hold in his field. Along with this, Brij Bhushan must have provided heavy funding to the party according to his status. So in such a situation, the question is not only of one MP seat, but also of heavy party funding. Which BJP does not want to lose at all. But on the other hand, the party is suffering because of not taking action, that too has become a matter of concern.
Now those who have been complaining about the lack of action on Brijbhushan for so long, they should understand that political parties take decisions only after seeing their profit and loss. He would have had nothing to do with the sentiments of the public. If this was really the case, then there would not have been a glut of tainted MPs in the Parliament.
In 2024, BJP may have to fight for one MP seat each. The wind direction this time is not the same as it has been the last two times. In such a situation, each and every MP, that too a seat-winning MP, matters a lot. BJP is multiplying politics in this dilemma. He knows that the people who "catch" this MP are standing outside.
Inside, a lot of soot will be smeared on each other, but whenever these leaders of BJP come out from inside, believe me, they will come out wearing a fine sheet of decency.
हिन्दी रुपांतरण
बृजभूषण शरण ने मीडिया से बात करते वक्त दो शब्दों पर काफी जोर दिया। पहला--- मेरी हैसियत 50 हजार करोड़ की है।
दूसरा--- मेरा व अखिलेश यादव का बचपन का साथ है।
ये दोनों ही वाक्य राजनीति रुप से बेहद अहम है। यह दोनों वाक्य उन्होंने किसी और को नहीं, अपितु अप्रत्यक्ष-वे में बीजेपी के लिए ही कहे है। इसकी गूंज बीजेपी के कानों तक अच्छी तरह पहुंच भी गई होगी।
किसी भी राजनीतिक पार्टी का अस्तित्व "नोट" (फंडिंग) व "वोट" पर टिका होता है। बृजभूषण का अपनी हैसियत का दंभ भरना यह बताता है, कि उसके न रहने पर बीजेपी क्या खोने वाली है ?
अखिलेश यादव से बचपन का नाता बताकर उन्होंने दूसरा दांव बीजेपी को यह बताने के लिए खेला, कि यदि आप नहीं, तो "समाजवादी पार्टी" मेरा अगला ठिकाना है।
इस वक्त बीजेपी की स्थिति सांप-छछूंदर जैसी हो चली है। उसे भली-भांति मालूम है, कि बृजभूषण की अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। साथ ही हैसियत के मुताबिक बृजभूषण पार्टी को मोटी फंडिंग भी जरुर कराते होगे। तो ऐसे में सवाल पूरी एक सांसद सीट का ही नहीं , बल्कि मोटी पार्टी फंडिंग का भी है। जिसे बीजेपी हरगिज नहीं खोना चाहती। पर दूसरी तरफ कार्यवाही न करने पर पार्टी की जो फजीयत हो रही है, वो भी चिंता का विषय बना हुआ है।
अब जो लोग इतना समय बृजभूषण पर कार्यवाही न होने पर हाय-तौबा मचाये हुए है, उन्हें समझ लेना चाहिए, कि राजनैतिक पार्टियां अपना नफा-नुकसान देखकर ही फैसला लेती है। उन्हें जनता की भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं होता। यदि सचमुच ऐसा होता, तो संसद में दागी सांसदों की भरमार न होती।
2024 में बीजेपी को एक-एक सांसद सीट के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। हवा का रुख इस बार कुछ वैसा नहीं है, जैसा पिछली दो बार रहा है। ऐसे में एक-एक सांसद, वो भी सीट जिताऊ सांसद बहुत मायने रखता है। बीजेपी इसी कसमकश में राजनीति का गुणा-भाग लगा रही है। उसे मालूम है, कि इस सांसद को "कैच" करने वाले लोग बाहर ही खड़े है।
अंदरखाने एक-दूसरे पर खूब कालिख की लीपा-पोती की जायेगी, पर जब भी बीजेपी के, ये नेतागण अंदर से बाहर निकलेंगे, विश्वास मानिए, शराफ़त की महीन चादर ओढ़कर ही बाहर आयेगें।
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