How strange, that Modi, who opposes familyism from every platform, is openly standing shoulder to shoulder with Brij Bhushan, a staunch supporter of familyism.
Till now people who know and recognize Modi have understood very well that Modi does not follow even one percent of what he speaks on forums. Perhaps this quality of his has brought him to the category of "Fenku" today.
Modi is expert in changing sides. That's why while giving the slogan of "Beti Padhao, Beti Bachao", leaders like Brij Bhushan stand in their court. Similarly, on one hand, Modi calls himself a well wisher of the farmers, and the next moment he is seen standing in the court of "Tenni". Similarly, Prime Minister Modi calls himself the messiah of the poor, and on the other hand, along with Adani surrounded by corruption, he himself is found to have fallen in this quagmire of mud.
These few examples show that whatever words the Prime Minister says in public are only politically motivated, they can be applauded, but hands remain empty.
The time has come for the public to properly recognize the polytheists like Modi. By not allowing hypocrites like these to play with religious sentiments, a proper decision has to be taken keeping in mind only the issues around basic needs like unemployment, price rise etc.
हिन्दी रुपांतरण
कितनी अजीब बात है, कि जो मोदी परिवारवाद का हर मंच से विरोध करते है, वह आज खुलेआम परिवारवाद के घोर समर्थक बृजभूषण के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए है।
अब तक मोदी को जानने व पहचानने वाले लोग भली-भांति समझ चुके है, कि मोदी जो मंचों पर बोलते है, उसका वमुश्किल एक प्रतिशत भी पालन नहीं करते। शायद उनकी यहीं खूबी आज उन्हें "फेंकू" की श्रेणी तक ले आयी है।
मोदी पाला बदलने में माहिर है। तभी तो "बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ" का नारा देते-देते, बृजभूषण जैसे नेताओं के पाले में आ खड़े हो जाते है। उसी तरह एक तरफ मोदी अपने को किसानों का हितैषी बताते है, तो अगले ही पल वह "टेनी" के पाले में खड़े हुए दिखाई देते है। ठीक इसी प्रकार प्रधानमंत्री मोदी अपने को गरीबों का मसीहा बताते है, तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार से घिरे अडानी के साथ, इस कीचड़ के दलदल में स्वयं भी गिरे हुए पाये जाते है।
यह चंद उदाहरण बताते है, कि प्रधानमंत्री जनता के बीच जाकर जो भी शब्द कहते है, वह सिर्फ राजनीति से प्रेरित मात्र है, उन पर तालियां तो बज सकती है, पर हाथ खाली रहते है।
समय आ गया है कि जनता मोदी जैसे बहुरुपियों को ठीक से पहचाने। इन जैसे बहरुपियों को धार्मिक भावनाओं से खेलने की इजाजत न देकर, सिर्फ मूलभूत आवश्यकताएं, जैसे बेरोजगारी, मंहगाई आदि के इर्द-गिर्द मुद्दों पर ध्यान रखते हुए उचित निर्णय लेना ह़ोगा।
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