One was Pappu. The village was his abode. Childhood was spent in this village. That's why when he grew up, he made the village his workplace. Since this village was also the workplace of his generations. That's why Pappu had a special attachment to the village. People from different communities lived in the village. Everyone was pleased with Pappu's actions. Slowly, but the village was moving towards prosperity.
It was not that everything was good in the village. Some residents of the village did not like this image of Pappu, so they used to spread "Raita" every day by resorting to demonic tendencies to create hurdles in Pappu's work. But due to the unity of the villagers, he was always defeated and could not succeed in his intention.
One day, a Gujarati saint dressed in a saffron robe made his debut in the village with his circle of friends. Everyone in the circle was trimmed. As soon as he arrived, he set up his camp under a banyan tree near the village, and started living. In the circle of friends of Saint Gujrati, along with the disciples, there were also some trumpeters, who had got the responsibility of preaching. That's why he used to keep promoting Saint Gujarati every now and then. These trumpeters slowly started creating an atmosphere of a Gujarati saint in the village.
For this, first of all, he hurt the unity of the village. Every now and then he used to shout on the horn that "Hindus of this village are in danger". Earlier, the villagers could not believe this. After listening to the words of the trumpeters, they started laughing at each other's face and said that. When "we are one", then who is in danger? After all, what message does this Gujarati saint want to give?
Tell a lie, lie again and again, lie a thousand times, tell it several times a day, while chanting this Mahamantra, Saint Gujarati, while doing "Kand", was awarded the title of "Mahakandi" in the past. Due to continuous false propaganda by the whistle blowers, gradually an atmosphere of fear was created among the villagers. They started wondering whether "Hindu is really in danger". After all, the seed that was sown had now taken the form of a tree.
The direction of the wind had changed. The villagers had completely come under the spell of the Gujarati saint. Seeing all this happening in front of his eyes, Pappu got worried, he kept trying to convince the villagers, that this is all a lie, a hoax, a deep conspiracy to break you people from each other. But by then it was too late. The villagers had now become "blind devotees" by falling in the trap of the Gujarati saint. They didn't listen to Pappu, and snatched all the rights of Pappu in a hurry and handed them over to Gujarati saint. The intention with which the Gujarati saint had created such a big conspiracy was completed.
The Gujarati saint first created an atmosphere of hatred among the villagers by calling Pappu a follower of another religion. Even on this, when the heart was not satisfied, then by making false allegations against him in the full panchayat, he was forced to leave the village house. By now Pappu had come to know that the villagers are just unable to understand the crisis they are facing. But Pappu did not lose his courage. He was determined to continue his struggle for the villagers. For this, he also took out "Gaon Jodo Yatra" to make the villagers aware again.
One day Pappu was sitting sad at home worrying about the villagers, when he felt someone's hand on his shoulder from behind, turned around and saw that he was his friend. Whenever Pappu was alone, he often discussed any issue with this friend. This was the reason, that the friend was aware of all his things. The series of talks went on, so in a matter of words the friend said that, as the bite of poison is poison, in the same way why can't the bite of religion be religion? Pappu said, but I am a follower of all religions, I cannot favor any one religion only for vested interest. If the villagers want to adopt me again, they will have to come forward believing in my genuineness. Yesterday also I stood with the truth, and today also I stand with the truth. The truth cannot be kept under wraps for a long time, it definitely comes out one day. I also firmly believe that whenever the lies of Saint Gujarati will be exposed, on that day, if the villagers hate anyone the most, it will be none other than this person. Hearing all this, the friend nodded his head in agreement, and went away. Pappu again closed his eyes and got immersed in deep thought.
हिन्दी रुपांतरण
एक था पप्पू। गांव उसका ठिकाना था। बचपन इसी गांव में बीता था। इसलिए जब बड़ा हुआ, तो गांव को ही उसने अपना कर्मस्थली क्षेत्र बना लिया। चूंकि यह गांव उसकी पीढ़ियों का भी कर्मस्थली क्षेत्र था। इसलिए पप्पू का गांव से विशेष लगाव था। गांव में विभिन्न समुदाय के लोग रहते थे। सभी पप्पू के कार्यों से प्रसन्न थे। धीरे-धीरे ही सही, पर गांव समृद्धि की ओर बढ़ रहा था।
ऐसा नहीं था, कि गांव में सभी कुछ अच्छा ही था। गांव के कुछ निवासियो को पप्पू की ये छवि फूटी आंख नहीं सुहाती थी, इसलिए वे समय-समय पर पप्पू के कार्यों में अड़चन डालने के लिए असुरी प्रवृत्तियों का सहारा लेकर , आये दिन "रायता" फैलाते रहते थे। पर गांव वालों की एकता के कारण वह हमेशा मात खा जाते, और अपनी मंशा मे सफल नहीं हो पाते।
एक दिन की बात, गांव में एक भगवा वस्त्र पहने, गुजराती संत का अपनी मित्र-मंडली सहित पदार्पण हुआ। मंडली में सभी के सभी छंटे हुए थे। आते ही गांव के निकट एक वट वृक्ष के नीचे अपना डेरा जमा जमाया, और रहने लगे। संत गुजराती के मित्र-मंडली में चेले-चाटों के साथ-साथ कुछ भोंपूधारी भी थे, जिन्हें प्रचार का जिम्मा मिला हुआ था। इसलिए वो संत गुजराती का जब-तब प्रचार करने में लगे रहते। इन भोंपूधारियों ने धीरे-धीरे करके गांव में, गुजराती संत का माहौल बनाना प्रारंभ कर दिया।
इसके लिए सर्वप्रथम, उन्होंने गांव की एकता पर चोट की। वो जब-तब भोंपू पर चीखते रहते, कि इस गांव का "हिन्दू खतरे में" है। पहले तो गांव वासियों को इस बात का विश्वास ही नहीं होता था। भोंपूधारियों की बातें सुन, वे एक-दूसरे की शक्ल देख हंसने लगते, और कहते कि। जब "हम एक है", तो फिर खतरा किससे ? आखिर ये गुजराती संत क्या संदेश देना चाहता है ?
झूठ बोलो , बार बार झूठ बोलो, हजार बार झूठ बोलो, दिन में कई बार बोलो, इसी महामंत्र का जाप करते-करते, संत गुजराती "कांड" करते-करते, "महाकांडी " की उपाधि से, भूतकाल में नवाजा जा चुका था। भोंपूधारियों के लगातार झूठा प्रचार करते रहने से, गांव वालों में धीरे-धीरे भय का माहौल तैयार हो गया। वे सोचने लगे, कि कहीं वाकई "हिन्दू खतरे में" तो नहीं पड़ गया। आखिरकार जो बीज बोया गया था, वह अब वृक्ष का रूप धारण कर चुका था।
हवा का रुख बदल चुका था। गांव वाले गुजराती संत के बहकावे में पूरी तरह आ चुके थे। यह सभी कुछ अपनी आंखों के सामने होता देख, पप्पू व्यग्र हो उठा, वो गांववासियों को लगातार समझाने का प्रयास करने लगा, कि ये सब झूठ है, छलावा है, ये तुम लोगों को एक-दूसरे से तोड़ने की गहरी साज़िश है। पर तब तक काफी देर हो चुकी थी। गांववासी गुजराती संत के जाल में फंसकर अब "अंधभक्त" बन चुके थे। उन्होंने पप्पू की एक न सुनी, और आनन-फानन में पप्पू के समस्त अधिकार छीनकर, गुजराती संत के हवाले कर दिये। जिस मंशा से गुजराती संत ने जो इतना बड़ा कुचक्र रचा था, वो पूर्ण हो चुका था।
गुजराती संत ने सर्वप्रथम, पप्पू को दूसरे धर्म का अनुयायी बताकर, पप्पू के प्रति गांव वासियों में घृणा का माहौल पैदा कर दिया। इस पर भी जब दिल नहीं भरा, तो भरी पंचायत में उस पर मिथ्या आरोप लगवाकर उसे गांव के घर तक को छोड़ने पर विवश कर दिया। अब तक पप्पू को मालूम पड़ चुका था, कि गांववासी जिस संकट से घिरे है, वे उसे समझ नहीं पा रहे है। इतने पर भी पप्पू ने अपना साहस नहीं खोया। उसने गांववासियों के लिए अपना संघर्ष जारी रखने का दृढ़ संकल्प लिया। इसके लिए उन्होंने गांववासियों को पुनः जागरूक करने के लिए "गांव जोड़ो यात्रा" भी निकाली।
एक दिन पप्पू गांव वासियों की चिंता में, घर पर उदास बैठा हुआ था, तभी पीछे से किसी व्यक्ति के कंधे पर हाथ रखने का आभास हुआ, पलट कर देखा, तो वह उसका मित्र था। जब भी पप्पू अकेला होता, तो अक्सर इस मित्र के साथ, किसी भी मुद्दे पर चर्चा कर लिया करता था। यहीं कारण था, कि मित्र उनकी सारी बातों से अवगत रहता था। बातों का सिलसिला चल निकला, तो बातों ही बातों में मित्र बोला कि, जैसे "बिष" की काट "बिष" है, उसी प्रकार "धर्म" की काट "धर्म" क्यों नहीं हो सकता ? कुछ देर खामोशी बरतने के बाद पप्पू बोला, हो सकता है, क्यों नहीं हो सकता ? पर मैं तो सभी धर्मों का अनुयायी हूं, मैं किसी एक धर्म का पक्ष, केवल निहित स्वार्थ के लिए नहीं कर सकता। यदि गांववासियों को मुझे फिर से अपनाना है, तो उन्हें मेरे अंदर की सत्यता पर विश्वास करके ही आगे आना होगा। मैं कल भी सत्य के साथ खड़ा था, और आज भी सत्य के साथ खड़ा हूं। सच को बहुत समय तक पर्दे में नहीं रखा जा सकता। एक दिन वह अवश्य सामने आता है। मुझे अटल विश्वास है, कि जब भी गुजराती संत के झूठों का भांडा फूटेगा, उस दिन गांववासी यदि सबसे अधिक किसी से घृणा करेगे, तो और कोई नहीं, यहीं व्यक्ति होगा। मित्र ने यह सब सुनकर अपनी सहमति में सिर हिलाया, और वहां से चला गया। पप्पू फिर से आंख बंद कर गहरे चिन्तन में डूब गया।
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