Pages

Monday, May 15, 2023

साजिश


Fourth failure Manglu Raja, sitting in the court, was killing flies, that's why the information minister entered the court, unsuccessfully trying to kill the fly, Manglu Raja said excitedly -- Bako Information Minister, what news have you brought?  The Information Minister was a little uncomfortable with Raja Manglu's style of language, but as soon as the attention of Raja's fourth fail marksheet came to his notice, he said in a natural way -- Maharaj, the news is not good, we have lost the Karnataka fort.  On hearing this, Manglu Raja jumped from his seat, and said sternly to the Information Minister, how did this happen?  I did a tremendous "drama" in Karnataka?  How many "rath rallies" did I do there to make the people "blind devotees"?  Then how did you lose?  The Information Minister said in a fit of rage -- Yes, did you do "Rath Rallies"?  But the people there are not 4th failure like you, .... they...... I mean.........  .Maharaj, like you "Etayer Political Science", is not as much educated?  That's why she sat on the other side.  We can't do anything.  And came back after rubbing hands.

 On hearing this, the temperature of Manglu Raja got high, in anger he slapped the fly sitting on the cheek of the servant who was lighting the fan.  Being slapped hard, the servant woke up.  But as soon as King Manglu's craze and degree came to his attention, the fan started fluttering again, laughing hysterically.

Next scene -----

 King Mangalu was immersed in deep mourning in the court after losing the Karnataka fort, that's when the commander entered.  Raja Manglu got furious seeing him, said angrily -- Why, it is not visible that I am busy in work for 18-18 hours?  Still entered?  The commander said, forgive me for the impudence, Maharaj.  But the person I want to introduce you to is also not an ordinary person.  He is also a person working 18-18 hours like you.  If you want, you can do this 18-hour work in your spare time.  If you order, then that person should be produced.  Raja Manglu got thinking, who is such a person, who is challenging me by working for 18 hours?  To know the curiosity, he ordered the commander, that it is okay, let him come to the court.

 The commander clapped, just then a caped man dressed as a jester appeared in the court of King Mangalu.  Seeing that person, Raja Manglu somehow restrained his laughter and said that will he help us?  From the looks of it, it looks like it needs help on its own?  The commander, knowing the feelings of Raja Manglu, being unaware, said further, Maharaj, this is "Jaleshwar Maharaj. He doesn't talk blankly like you, but also reads.  It was also because, till now, he has straightened his owl by trapping so many people in his "trap". Now it is your turn. ....... I mean..  ..... is...... Maharaj, that now it is presented in your service.

      Raja Manglu took a look at Jaleshwar Maharaj, and said to the commander--- Yes, I have heard about it from my whistleblowers.  But what can it do for us?  The commander said - Maharaj, you tell me, what can't they do?  Just like there are many "blind devotees" in your public, similarly they also have many "retarded devotees".  Although they were working on our agenda for a long time, but ever since you lost the Karnataka fort, your credibility in the state has decreased.  That's why now your only "blind devotee" issue will not work?  For this, the cooperation of "retarded devotees" of Jaleshwar Maharaj will also have to be taken.  In their court, under the guise of religion, they intoxicate the good and the good with the fragrance of the sprinkles they make every now and then.

 Maharaj, you and Jaleshwar Maharaj have only one agenda, that is to hurt the unity of the people by provoking their sentiments.  You hurt the public by making Hindu-Muslim difference in the rallies, and Jaleshwar Maharaj keeps on making holes in the same unity by holding court.

 Impressed by the words of King Mangalu Senapati
 Said, what will this help at the moment?  The commander said -- Maharaj, he will decorate his court where your position remains critical.  Jaleshwar Maharaj just needs full support of your trumpeters.  If there is an alliance between your "blind devotees" and "retarded devotees" of Jaleshwar Maharaj and Bhonpudharis, then your flag will always be hoisted.
 After listening to all this, Raja Manglu ordered Jaleshwar Maharaj to start his mission.


हिन्दी रुपांतरण 

  चौथी फेल मंगलू राजा,  दरबार में बैठा,  मक्खियां मार रहा था,  कि तभी दरबार में सूचनामंत्री का प्रवेश हुआ, मक्खी मारने का असफल प्रयास करते हुए मंगलू राजा उत्साहित होकर बोला-- बको सूचनामंत्री, क्या खबर लाये हो ?   सूचनामंत्री राजा मंगलू की भाषा शैली से थोड़ा असहज हुआ, पर राजा की चौथी फेल मार्कशीट का ध्यान आते ही सहज भाव से बोला --महाराज खबर अच्छी नहीं है,  हम कर्नाटक दुर्ग हार चुके है।   इतना सुनते ही मंगलू राजा अपनी सीट से उछल पड़ा, और कड़ककर सूचनामंत्री से बोला, ये कैसे हुआ ?  कर्नाटक  में तो मैंने जबरदस्त "नाटक"  किया था ?  वहां तो जनता को " अंधभक्त"  बनाने के लिए मैंने कितनी  "रथ रैलियां" की थी ?  फिर कैसे हार गये ?   सूचना मंत्री आवेश में बोला--हां,  की थी आपने  "रथ रैलियां" ?   पर वहां की जनता आपकी तरह चौथी फेल नहीं है, .... वो...... मेरा.........मतलब .......है..........महाराज , आपकी तरह "एटांयर पालिटिकल सांइस", जितना पढ़ी-लिखी नहीं है ?  इसलिए दूसरे पक्ष में बैठ गई।  हम कुछ न कर सकें।  और हाथ मल कर वापिस आ गये। 

     इतना सुनते ही मंगलू राजा का पारा हाई हो उठा, गुस्से में  उसने पंखा झल रहे सेवक के गाल पर बैठी मक्खी पर थप्पड़ चला दिया।  जोरदार थप्पड़ खाने से, सेवक बिलबिला उठा।  पर राजा मंगलू की सनक व डिग्री का ध्यान आते ही, खिसियानी हंसी हंसते हुए, फिर से पंखा झलने लगा।

अगला दृश्य -----

       राजा मंगलू कर्नाटक दुर्ग हारने के बाद दरबार में गहरे शोक में डूबा हुआ था, कि तभी सेनापति का प्रवेश हुआ।  राजा मंगलू उसे देख आग बबूला हो उठा, गुस्से में तमतमा कर बोला--   क्यों बे, दिखाई नहीं देता कि मैं 18-18 घंटे काम में व्यस्त हूं  ?   फिर भी घुसा चला आया ?   सेनापति बोला,  गुस्ताखी माफ हो महाराज।  पर मैं जिस सख्श से आपको मिलवाना चाहता हूं,  वह भी कोई साधारण व्यक्ति नहीं है।  वह भी आपकी तरह 18-18 घंटे काम करने वाला व्यक्ति  है।  आप चाहे, तो तो ये 18 घंटे वाला काम, अपने फालतू समय में कर सकते है।   यदि आप हुक्म दें, तो उस व्यक्ति को पेश किया जाये।  राजा मंगलू सोच में पड़ गया, कि ऐसा कौन सा व्यक्ति है, जो 18 घंटे काम करके, मुझे चुनौती दे रहा हे ?  जिज्ञासा जानने के लिए उन्होंने सेनापति को आदेश दिया, कि ठीक है, दरबार में आने दिया जाये। 

            सेनापति ने ताली बजाई, तभी एक टोपीधारी विदूषक भेष-भूषा से सुसज्जित वाला व्यक्ति राजा मंगलू के दरबार में पेश हुआ।  उस व्यक्ति को देखकर राजा मंगलू  किसी तरह अपनी हंसी रोकते हुए बोले कि ये क्या हमारी मदद करेगा ?   देखने से तो ऐसा लगता है, जैसे इसे खुद ही मदद की जरूरत है ?  सेनापति,  राजा मंगलू के भाव को जानकर, अनजान बनते हुए अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला,  महाराज ये है " जालेश्वर महाराज।  यह आपकी तरह कोरी  "मन की बात" नहीं करते,  बल्कि पढ़ भी लेते है।  "जालेश्वर महाराज"  इनका नाम इसलिए‌ भी पड़ा, कि ये अब तक न जाने कितनी जनता को अपने "जाल"  में फंसाकर अपना उल्लू सीधा कर चुके है।  अब आपकी बारी है।  .......मेरा........ मतलब.......है...... महाराज,  कि अब ये आपकी खिदमत में पेश है।

       राजा मंगलू ने जालेश्वर महाराज पर एक नजर डाली, और सेनापति से बोले--- हां, इसकी चर्चा मैंने  अपने भोंपूधारियों से सुनी है ‌।    पर ये हमारे लिए क्या कर सकते है ?   सेनापति बोला - महाराज आप ये कहिये, कि ये क्या नहीं कर सकते ?  जैसे आपकी जनता में बहुत सारे "अंधभक्त"  है,  वैसे ही इनके पास भी  बहुत सारे "मंदभक्त" है।   वैसे तो ये हमारे एजेंडे पर ही बहुत समय काम-काज कर रहे थे, पर जबसे आप कर्नाटक दुर्ग हारे है, तब से राज्य  में आपकी विश्वसनीयता कम हुई है।  इसलिए अब आपके सिर्फ "अंधभक्त" बनाने वाले मुद्दे से काम नहीं चलेगा ?   इसके लिए जालेश्वर महाराज के  "मंदभक्तों"  का भी सहयोग लेना पड़ेगा।  ये अपने दरबार में, धर्म की आड़ में, जो बीच-बीच में जो छौंका लगाते है, उसकी महक से ये अच्छों-अच्छों को मदहोश कर देते है।
 
     महाराज , आपका व जालेश्वर महाराज का एक ही एजेंडा है, वह है, जनता की भावनाओं को भड़काकर, उनकी एकता पर चोट करना।   आप रैलियों में जनता में हिंदू-मुस्लिम करके चोट करते है, और जालेश्वर महाराज दरबार लगाकर, बीच-बीच में, उसी एकता में छेद करते रहते है। 

         राजा मंगलू सेनापति की बातों से प्रभावित होकर
बोला, कि ये फिलहाल ये क्या मदद करेगें ?  सेनापति  बोला--महाराज ये वहीं अपना दरबार सजायेगें, जहां आपकी स्थिति नाजुक बनी हुई है।  जालेश्वर महाराज  को बस आपके भोंपूधारियों का भरपूर साथ चाहिए। यदि आपके "अंधभक्त"  व जालेश्वर महाराज के "मंदभक्त" और भोंपूधारियों का गठजोड़ हो गया, तो आपका परचम सदा लहराता रहेगा।
      इतना सब कुछ सुनने के बाद राजा मंगलू ने जालेश्वर महाराज को अपने मिशन पर लग जाने का फरमान सुना दिया।

      


No comments:

Post a Comment