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Wednesday, May 17, 2023

jageshwar Maharaz ( जालेश्वर महाराज)


The court was on, King Mangalu was seated on his royal throne wearing a very strange dress.  In one corner, Jaleshwar Maharaj stands with some of his "manda bhaktas" in folded hands, while on the other side "roodan music" plays in the background for the defeat of the Karnataka fort.  Due to whose slow noise, along with the royal courtiers, King Manglu was also smoldering.  In between, a dancer lifting the cylinder was trying to reduce the pain of King Mangalu by “Mafi Maango Dance”. 

Only then the commander got up from his seat wiping his tears, and sought permission from Raja Manglu to start the proceedings of today's court.  Raja Manglu was also a little mad, but keeping control over himself said--- "Okay, let the proceedings of the court be started." 

The commander politely bowed his head and saluted, and said --- Maharaj, today's breaking news is that something is happening in Bihar fort as we wanted.  Jaleshwar Maharaj, under the guise of religion, is succeeding in hurting the unity of the people of Bihar fort.  Your "blind devotees" and "retarded devotees" of Jaleshwar Maharaj and the hooligans lying at your feet have created the whole atmosphere.  You just somehow get "elections" done there. 

       King Mangalu's "Kamariya" suddenly started shaking on hearing the word "election". And strange poses like "serpent dance" started coming out. Seeing which all the courtiers tried unsuccessfully to stop laughing by hiding their faces.
That's why the Home Minister stood up while handling the atmosphere and giving instructions to all the courtiers and said -- Beware, someone uttered the word "election" in front of Maharaj.  Hearing these words, what about the people of the state, they don't even listen to their own.  Wrestlers of our state are also looking here for justice, when will Maharaj come out of "Election Sports"?  And when will they get justice?  That thing is different, that in the scales of justice, every now and then, by increasing the weight in their favor, they have more faith in solving the case. 

After this, the commander got up again and continued his point and said--- Maharaj, though Jaleshwar Maharaj reads the "Mann Ki Baat" of the public, but every now and then he also has the fear that some day the public will  Did you understand the words of your mind?  Then what will happen?  That's why one of his Pushpak aircraft always stands ready to go abroad. 

After listening to the whole story, Raja Manglu kept scratching his beard for some time, after getting some rest said-- Okay, along with the "blind devotees", if an army of "retarded devotees" also stands up, then what good is it to me?  Objection?  We need only loose minded people like this "Khurpench" to run the state.  Such people are neither troubled by the rising unemployment in the state, nor by the inflation.  Most importantly, he doesn't even humiliate me by calling me "fourth fail", and keeps roaming around with my "Entire Political Science" degree pasted on his forehead. 

After this, Raja Manglu, announcing the end of the court, issued instructions to Jaleshwar Maharaj to start the next agenda after Bihar fort. 

  


हिन्दी रुपांतरण


दरबार लगा हुआ था, राजा मंगलू  बड़ी अजीब सी पोशाक पहने अपने राज सिंहासन पर आसीन थे।  एक कोने में,  जालेश्वर महाराज अपने कुछ  "मंदभक्तों"  को लिए,  हाथ जोड़े मुद्रा में खड़े थे, वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक दुर्ग हार जाने पर  बैकग्राउंड में "रूदन संगीत"  चल  था।  जिसके मंद-मंद शोर से राजदरबारियों के साथ-साथ राजा मंगलू भी सुलग रहे थे।   बीच-बीच में सिलेंडर उठाये एक नर्तकी  "माफी मांगों नृत्य"  से राजा मंगलू की वेदना,  कुछ कम करने का प्रयास कर रही थी। 

          तभी सेनापति आंसू पोंछते हुए अपनी सीट से उठा, और राजा मंगलू से आज के दरबार की कार्यवाही शुरू करने की इजाजत मांगी।  राजा मंगलू भी थोड़े पगलाये हुए थे, पर अपने पर नियंत्रण रखते हुए बोले---ठीक है,  दरबार की कार्यवाही शुरू की जाये।   

    सेनापति ने अदब से सिर नीचा कर सलाम ठोका, और बोला ---महाराज, आज की ब्रेकिंग न्यूज ये है, कि बिहार दुर्ग में जैसा हम चाहते थे, वैसा ही कुछ हो रहा है। जालेश्वर महाराज, धर्म की आड़ में बिहार दुर्ग की जनता की एकता पर चोट करने में सफल हो रहे है। आपके "अंधभक्त" और जालेश्वर महाराज के "मंदभक्त" और आपके पैरों  में पड़े भोंपूधारियों ने पूरा माहौल बना दिया है।  बस आप किसी तरह वहां "चुनाव"  करवा दें। 

      "चुनाव "  शब्द सुनते ही राजा मंगलू की "कमरिया"  अचानक हिलने लगी।  और "नागिन डांस"  जैसे अजीबो-गरीब पोज बाहर आने लगे।  जिसे देख समस्त दरबारी मुंह छिपाकर हंसी रोकने का असफल प्रयास करने लगे।  
       तभी गृहमंत्री ने खड़े होकर माहौल को सम्हालते हुए सभी दरबारियों को निर्देश देते हुए कहा--खबरदार, जो किसी ने महाराज के सामने "चुनाव" शब्द बोला।  ये शब्द सुनकर वह राज्य की जनता की क्या, वे अपनी भी नहीं सुनते है।   हमारे राज्य के पहलवान भी इंसाफ के लिए टकटकी लगाये यहीं देख रहे है, कि कब महाराज  "चुनावी क्रीड़ा"  से बाहर आयेगें ?  और कब उन्हें इंसाफ मिलेगा ?   वो बात अलग है, कि इंसाफ के तराजू में, जब-तब अपनी तरफ वजन बढ़ाकर मामले को सुलझाने में, ज्यादा विश्वास रखते है। 

        इसके बाद सेनापति पुनः उठकर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला---महाराज, वैसे तो जालेश्वर महाराज जनता के "मन की बात"  पढ़ लेते है, पर इन्हें भी जब-तब भय सताता रहता है कि कहीं किसी दिन जनता ने इनके "मन की बात"  समझ ली ?  तो फिर क्या होगा ?   इसलिए इनका एक पुष्पक विमान विदेश में जाने के लिए हमेशा तैयार खड़ा रहता है। 

       सारा वाक्या सुननें  के पश्चात, राजा मंगलू अपनी दाढ़ी को कुछ देर खुजाते रहे, कुछ चैन मिलने के पश्चात बोले-- ठीक है, "अंधभक्त"  के साथ-साथ यदि  "मंदभक्तों"  की भी फौज खड़ी हो जाये, तो इसमें भला मुझे क्या आपत्ति ?   हमें तो राज्य चलाने के लिए कुछ ऐसे ही "खुरपेंच"  ढीले दिमाग वाले लोग ही चाहिए ।  ऐसे लोग न तो राज्य में बढ़ती बेरोजगारी से परेशान होते है, और न मंहगाई से।   सबसे बड़ी बात, वह मुझे "चौथी फेल"  कहकर ज़लील भी नहीं करते है, और मेरी "एंटायर पालिटिकल सांइस" की डिग्री अपने माथे पर चिपकाये जहां-तहां घूमते भी रहते है। 

    इसके बाद राजा मंगलू ने दरबार की समाप्ति की घोषणा करते हुए , जालेश्वर महाराज को बिहार दुर्ग के बाद अगले एजेंडे पर लग जाने के निर्देश जारी कर दिए।

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