Amazing people...
Those who are eager to become "Bhogi" are being forced to become "Yogi" by making them fry pakoras.
A lot of effort is being made to make those who are real "Yogi" "Bhogi".
We have sympathies for the educated unemployed who fry pakodas. Sooner or later, he too must have realized that he used to spend his head unnecessarily in syllabus books, if only he could have memorized some books of mantras, then today he too became a monk, sitting in the queue and enjoying halua-puri and luxuries. were enjoying
Now the difficult compulsion of going to the Himalayan Mountains after becoming a sannyasin has also ended. Right here in "AC" one can straighten one's own owl by spreading knowledge to others.
Look at the inauguration of the new parliament building itself, well-educated people of course were seen in the back row than the last, so tell me? Seeing them, the educated unemployed people who fry pakoras must have felt "disgust" on seeing their degree.
This is the specialty of our country, no one asks the educated here, they only fry pakoras. On the other hand, "fourth fail" even become the Prime Minister.
हिन्दी रुपांतरण
अजब- गजब है लोग--
जो "भोगी" बनने को लालयित है, उन्हें पकौड़े तलवाकर "योगी" बनने पर मजबूर किया जा रहा है।
जो सचमुच के "योगी" है, उन्हें "भोगी" बनाने की भरपूर चेष्टा की जा रही है।
पकौड़े तलने वाले शिक्षित बेरोजगारों के प्रति हमारी संवेदनाएं है। देर-सवेर उन्हें भी समझ आ ही गया होगा, कि बेकार ही पाठ्यक्रम की पुस्तकों में अपना सिर खपाते रहे, सिर्फ कुछ मंत्रों की किताबों का रट्टा भी मार लेते, तो आज वो भी संन्यासी बनकर, कतार में बैठे हलुआ-पूरी व भोग विलासिता का आनन्द ले रहे होते।
अब संन्यासी बनकर हिमालय पर्वत पर जाने की कठिन अनिवार्यता भी खत्म हो चुकी है। यहीं "AC" में बैठे-बैठे दूसरों को ज्ञान पेलकर, अपना उल्लू सीधा किया जा सकता है।
नये संसद भवन के उद्घाटन में ही देख लों, पाठ्यक्रम के पढ़े-लिखे, शिक्षित व्यक्ति पिछली से भी पिछली कतार में नजर आ रहे थे, तो बताओं ? इन्हें देखकर पकौड़ा तलने वाले शिक्षित बेरोजगारों को अपनी डिग्री देखकर मन ही मन "घृणा" अवश्य हुई होगी।
हमारे देश की यहीं तो विशेषता है, यहां पढ़े-लिखों को कोई नहीं पूछता, वो सिर्फ पकौड़े तलते है। वहीं दूसरी तरफ "चौथी फेल" प्रधानमंत्री तक बन जाते हैं।
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