King Mangalu was busy in adorning his body and wearing clothes since morning, seeing all this, the maids and servants were busy in their respective works laughing hiding their faces. In Raja Manglu's working time of 18 hours, 5-6 hours were spent in this.
Only then a courtier enters, as soon as he came, he said,
---- Jahanpanah's expectation should be high.
---- What news have you brought?
--- Maharaj, your second court is also ready, only the inauguration is left.
--- So what is the big deal in this, we work here from morning to evening, will we do this too?
------ But Maharaj, your opponents want to get this work done by "Supremeo", who is also a Dalit.
------ As soon as he heard this, King Manglu got angry, and shouted -- How can this happen? I will inaugurate the new court. Should he do anything else?
------ Government, where have you left them of any worth? By giving and taking only the opening remains, you have control over that too. Now she is not even able to show her face to the tribal society.
-------No, no, no. It was said that this cannot happen. I will inaugurate this. No matter what happens.
-------- Maharaj, you have been stubborn since the beginning, have you allowed anyone to walk in front of you till date? Who will let it go today? But this time your opponents are adamant, saying that if the inauguration is not done by "Supremo", they will boycott it.
--------- Tell the opponents, we don't even need them. Anyway, I do not like any kind of protest.
He is an opponent, even if no one from my side reaches, I will reach alone to cut the ribbon.
On hearing this, tears flowed from the eyes of the courtier, he said-..stop...stop Maharaj. Your dedication to this inauguration makes me emotional. You may not have done anything for the public till date, but you have sacrificed everything for the inauguration.
same evening palace, the king and all the courtiers were decorated, the king and the courtiers were intoxicated by the beat of the dholak and the jingle of the ghungroos. The whole palace was echoing with the background voice "Chalte-chalte, yon hi koi mil gaya tha".
हिन्दी रुपांतरण
राजा मंगलू सुबह से ही अपने शरीर के श्रंगार, व परिधान पहनने में व्यस्त था, यह सब देख, दास-दासियां मुंह छिपाकर हंसते हुए अपने-अपने कामों में व्यस्त थे। राजा मंगलू के 18 घंटे के कामकाजी समय में 5-6 घंटे तो इसी में ही निकल जाते थे।
तभी एक दरबारी का प्रवेश होता है, आते ही बोला,
----जहांपनाह का इस्तकबाल बुलंद हो।
---- क्या खबर लाये हो ?
---महाराज, आपका दूसरा दरबार भी बनकर तैयार हो चुका है, बस उद्घाटन करना बाकी रह गया है।
---तो इसमें कौन सी बड़ी बात है, सुबह से शाम हम यहीं काम तो करते है, इसका भी कर देगें ?
------पर महाराज, आपके विरोधी ये काम "सुप्रीमो", जो कि दलित भी है, उनसे करवाना चाहते है।
------इतना सुनते ही राजा मंगलू भड़क उठा, और चीखते हुए बोला--ऐसा कैसे हो सकता है ? नये दरबार का उद्घाटन तो मैं ही करुंगा। वो कुछ और कर लें ?
------सरकार, आपने उन्हें किसी लायक छोड़ा ही कहां है? ले-देकर उद्घाटन ही रह जाता है, उस पर भी आपका कब्जा है। वो तो अब आदिवासी समाज को भी मुंह दिखाने लायक नहीं रही।
-------नहीं..... नहीं.... नहीं। कह दिया न, ये नहीं हो सकता। ये उद्घाटन तो मैं ही करुंगा । चाहे कुछ भी हो जाये।
--------महाराज, वो तो आप शुरु से ही जिद्दी रहे है, अपने आगे आज तक किसी की चलने दी है ? जो आज चलने देगें ? पर इस बार आपके विरोधी अड़ गये है, कह रहे है, कि यदि उद्घाटन "सुप्रीमो" द्वारा नहीं कराया, तो वह इसका वहिष्कार करेंगे।
--------- कह दो विरोधियों से, हमें उनकी कोई जरूरत भी नहीं है। वैसे भी मुझे किसी तरह का विरोध पसंद नहीं है।
ये तो विरोधी है, यदि मेरे पक्ष का भी कोई नहीं पहुंचा, तो भी मैं अकेला फीटा काटने पहुंच जाऊंगा।
इतना सुनते ही दरबारी की आंखों से अश्रु बह निकले, वह बोला-..बस...बस कीजिए महाराज। आपका यही उद्घाटन का समर्पण व उतावलापन मुझे भाव-विभोर कर देता है। जनता के लिए चाहे आपने आज तक कुछ ढेला भी न किया हो, पर उद्घाटन के लिए आपने, अपना सब कुछ न्यौछावर कर रखा है।
उसी शाम महल, राजा व समस्त दरबारी सजे हुए थे, ढोलक की थाप व घुंघरूओं की झंकार से राजा व दरबारी मदहोश थे। बैकग्राउंड आवाज "चलते-चलते, यों ही कोई मिल गया था" से पूरा महल गूंज रहा था।
तभी एक दरबारी का प्रवेश होता है, आते ही बोला,
----जहांपनाह का इस्तकबाल बुलंद हो।
---- क्या खबर लाये हो ?
---महाराज, आपका दूसरा दरबार भी बनकर तैयार हो चुका है, बस उद्घाटन करना बाकी रह गया है।
---तो इसमें कौन सी बड़ी बात है, सुबह से शाम हम यहीं काम तो करते है, इसका भी कर देगें ?
------पर महाराज, आपके विरोधी ये काम "सुप्रीमो", जो कि दलित भी है, उनसे करवाना चाहते है।
------इतना सुनते ही राजा मंगलू भड़क उठा, और चीखते हुए बोला--ऐसा कैसे हो सकता है ? नये दरबार का उद्घाटन तो मैं ही करुंगा। वो कुछ और कर लें ?
------सरकार, आपने उन्हें किसी लायक छोड़ा ही कहां है? ले-देकर उद्घाटन ही रह जाता है, उस पर भी आपका कब्जा है। वो तो अब आदिवासी समाज को भी मुंह दिखाने लायक नहीं रही।
-------नहीं..... नहीं.... नहीं। कह दिया न, ये नहीं हो सकता। ये उद्घाटन तो मैं ही करुंगा । चाहे कुछ भी हो जाये।
--------महाराज, वो तो आप शुरु से ही जिद्दी रहे है, अपने आगे आज तक किसी की चलने दी है ? जो आज चलने देगें ? पर इस बार आपके विरोधी अड़ गये है, कह रहे है, कि यदि उद्घाटन "सुप्रीमो" द्वारा नहीं कराया, तो वह इसका वहिष्कार करेंगे।
--------- कह दो विरोधियों से, हमें उनकी कोई जरूरत भी नहीं है। वैसे भी मुझे किसी तरह का विरोध पसंद नहीं है।
ये तो विरोधी है, यदि मेरे पक्ष का भी कोई नहीं पहुंचा, तो भी मैं अकेला फीटा काटने पहुंच जाऊंगा।
इतना सुनते ही दरबारी की आंखों से अश्रु बह निकले, वह बोला-..बस...बस कीजिए महाराज। आपका यही उद्घाटन का समर्पण व उतावलापन मुझे भाव-विभोर कर देता है। जनता के लिए चाहे आपने आज तक कुछ ढेला भी न किया हो, पर उद्घाटन के लिए आपने, अपना सब कुछ न्यौछावर कर रखा है।
उसी शाम महल, राजा व समस्त दरबारी सजे हुए थे, ढोलक की थाप व घुंघरूओं की झंकार से राजा व दरबारी मदहोश थे। बैकग्राउंड आवाज "चलते-चलते, यों ही कोई मिल गया था" से पूरा महल गूंज रहा था।
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