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Tuesday, May 30, 2023

new court(नया दरबार)


After solemnly inaugurating the new court, King Mangalu was seated on the new throne with both legs raised.  The auditorium was full of courtiers.  The music of "Main Hi Main Hoon" was playing in the court.  King Mangalu Turai Chhap was holding binoculars, with that binoculars he kept an eye on the courtiers sitting nearby, in between he would focus the binoculars towards "Cylinder Dancer", which was enthralling by making distant angles.

 That's why the commander sought permission to start the proceedings of the assembly, disturbing the Maharaj's concentration.
 King Manglu Anand was a little shocked when there was a disturbance, but after controlling the situation, he said- ----- It is allowed.
 The commander bowed his head with respect and said -- Maharaj, according to your plan, the wrestlers of the state have been beaten up and chased away.  Now there is no threat to your image.
 --- King Manglu said in a happy mood -- "The devil is happy."
 I can compromise with corruption, but not with my image.  To maintain this image, I have kept the horns.  Whose job is to whiten all my black deeds.

 --- Only then a courtier got up, and said- But Maharaj, the criminal against whom the wrestlers were rebelling, is a member of our auditorium, won't this hurt your image?

 --- King Manglu said furiously, don't talk about pushing my image again and again, otherwise I will push you out?
 The evil person is my strength.  Whether it is the movement of farmers, or now of wrestlers?  I have always been getting powers from a bad person.  It is, so I am.
 Keep one thing in mind, as long as the "blind devotees" and "retarded devotees" of the state are engaged in my "ji huzuri", I need not worry much anyway.

 --- Then a courtier present in the assembly stood up with a placard in his hand, on which it was written---
 "Satyameva Jayate" .
 --- King Mangalu smiled and looked at that courtier with loving eyes, and even without wanting to "wink" him with the left, announced the end of today's court proceedings.


हिन्दी रुपांतरण


नये दरबार का दंडवत उद्घाटन करने के पश्चात,  राजा मंगलू नये सिंहासन पर दोनों पैर ऊपर करके बैठा हुआ था।   सभागार दरबारियों से भरा था।  दरबार में  "मै ही मैं हूं"   का संगीत चल रहा था।  राजा मंगलू तुरई छाप दुरबीन पकड़े था, उस दुरबीन से वह पास बैठे दरबारियों पर नजर रखे था,  बीच-बीच में दुरबीन का फ़ोकस "सिलेंडर नर्तकी"  की तरफ कर लेता, जिससे दूर-पास का ऐंगल बनाकर रोमांचित हो रहा था।

       तभी सेनापति ने महाराज की एकाग्रता में खलल डालते हुए सभा की कार्यवाही चालू करने के लिए इजाजत मांगी।  
    राजा मंगलू आनन्द में विध्न पड़ने पर थोड़ा तिलमिलाया, परन्तु हालात पर काबू पाकर बोला- -----इजाज़त है।
     -- सेनापति अदब से सिर झुकाते हुए बोला--महाराज, आपकी योजना के मुताबिक राज्य के पहलवानों को मारपीट कर भगा दिया गया है।  अब आपकी छवि को कोई खतरा नहीं है। 
   --- राजा मंगलू प्रसन्न मुद्रा में बोला-- "शैतान खुश हुआ।"
मैं भ्रष्टाचार से समझौता कर सकता हूं,  पर अपनी छवि से नहीं ।   इस छवि को बरकरार रखने के लिए ही मैंने भोंपूधारी रखे हुए है।  जिनका काम ही मेरे हर काले कारनामों को सफेद करना है।

      --- तभी एक दरबारी उठा, और बोला-पर महाराज, जिस अपराधी के खिलाफ पहलवान बगावत कर रहे थे, वह तो हमारी सभागार का सदस्य है, क्या इससे आपकी छवि को धक्का नहीं पहुंचेगा ?

    ---राजा मंगलू बौखलाकर बोला, ये बार-बार मेरी छवि को धक्का देने की बात मत किया करो, अन्यथा तुम्हें धक्का मारकर बाहर करवा दूंगा ?
     दुराचारी व्यक्ति ही मेरी ताकत है। चाहे किसानों का आंदोलन हो,  या अब पहलवानों का ?  मुझे हमेशा दुराचारी व्यक्ति से ही शक्तियां मिलती रही है।   ये है,  तो मैं हूं।  
       एक बात का ध्यान रखों,  जब तक राज्य के "अंधभक्त"  व  "मंदभक्त"  मेरी "जी हुजूरी"  में लगे रहेगें, मुझे वैसे भी ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। 

       ---तभी सभा में उपस्थित एक दरबारी अपने हाथ में एक तख्ती लेकर खड़ा हो गया, जिस पर लिखा था---   
  "सत्यमेव जयते" ।
       ---राजा मंगलू ने मुस्कुरा कर प्यार भरी नजरों से,  उस दरबारी को देखा,  और न चाहते हुए भी उसे बांई  "आंख मारते"  हुए आज के दरबार की कार्यवाही समाप्त करने की घोषणा कर दी। 


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