King Mangalu was sitting on the throne in the court, sticking Singol to his chest. To entertain the gathering, the "Shoot" minister was trying to please the Maharaj by taking his "Pothi" and reciting brand new "provocative speeches". At the same time the commander enters the court running-
--- Commander --- (gasping) --- Jahanpanah's.... Iqbal.... Buland... Ho...
----- Raja Manglu (panicking) -- What happened commander? Is there a journalist behind?
Commander -- No...... Maharaj.
Raja Manglu --- I was scared. Our digestion gets spoiled on seeing a true journalist. Look, one of our ministers has somehow run away from the questions. Don't know what she asked, ever since she came running away, she is not losing her sense of consciousness.
That's why I keep my "patent" hoots, which don't go much further than just asking questions like "whether to eat the mango by cutting it or by sucking it".
Senapati --- But Maharaj, the news I have brought is not good news. Trains collided in the Orissa part of the state, in which many people have been killed, and many are in injured condition.
Raja Manglu Khisiyakar -- So is he "dead" for me?
Hey, when the farmers were ′′ dead ′′ on the border, even then my answer was here.
Senapati ----But Maharaj, the opposition group is holding you responsible for all this, asking you to resign on the basis of morality.
Raja Manglu -- Why does the opposition always demand such things, which have nothing to do with my "childhood".
We are saddened by your words. Therefore, on this "occasion of disaster", it should be announced in the entire state that we will not be able to do any court work for the next one week during this time of sorrow. Therefore, the proceedings of the court should end here.
To remove his sorrow, King Mangalu was lost in dance.
The palace was resounding with "hymns" -- "These people have taken...., don't believe us, ask the soldier". King Mangalu, on this occasion of "democracy", was seeing the "monarchy" in person.
--- Commander --- (gasping) --- Jahanpanah's.... Iqbal.... Buland... Ho...
----- Raja Manglu (panicking) -- What happened commander? Is there a journalist behind?
Commander -- No...... Maharaj.
Raja Manglu --- I was scared. Our digestion gets spoiled on seeing a true journalist. Look, one of our ministers has somehow run away from the questions. Don't know what she asked, ever since she came running away, she is not losing her sense of consciousness.
That's why I keep my "patent" hoots, which don't go much further than just asking questions like "whether to eat the mango by cutting it or by sucking it".
Senapati --- But Maharaj, the news I have brought is not good news. Trains collided in the Orissa part of the state, in which many people have been killed, and many are in injured condition.
Raja Manglu Khisiyakar -- So is he "dead" for me?
Hey, when the farmers were ′′ dead ′′ on the border, even then my answer was here.
Senapati ----But Maharaj, the opposition group is holding you responsible for all this, asking you to resign on the basis of morality.
Raja Manglu -- Why does the opposition always demand such things, which have nothing to do with my "childhood".
We are saddened by your words. Therefore, on this "occasion of disaster", it should be announced in the entire state that we will not be able to do any court work for the next one week during this time of sorrow. Therefore, the proceedings of the court should end here.
To remove his sorrow, King Mangalu was lost in dance.
The palace was resounding with "hymns" -- "These people have taken...., don't believe us, ask the soldier". King Mangalu, on this occasion of "democracy", was seeing the "monarchy" in person.
हिन्दी रुपांतरण
दरबार में राजा मंगलू, सीने से सिंगोल चिपकाये, सिंहासन पर विराजमान था। सभा का मनोरंजन करने के लिए "गोली मारो" मंत्री अपनी "पोथी" लेकर एकदम नये ताजा "भड़काऊ भाषण" सुनाकर, महाराज को प्रसन्न करने का प्रयास कर रहे थे। उसी समय दौड़ते हुए सेनापति का दरबार में प्रवेश होता है--
--- सेनापति --(हांफते हुए)---जहांपनाह का.... इकबाल.... बुलन्द.... हो..।
----- राजा मंगलू (घबड़ाते हुए) --क्या हुआ सेनापति ? कोई पत्रकार है पीछे ?
सेनापति -- नहीं ......महाराज।
राजा मंगलू ---मैं तो डर ही गया । सच्चे पत्रकार को देखते ही हमारा हाजमा खराब हो जाता है। देखों, हमारी एक मंत्री, जैसे-तैसे प्रश्नों से भागकर आई है। जाने क्या पूछ लिया उसने, जबसे भागकर आई है, रह-रहकर, मूर्छा नहीं टूट रहीं।
मैंने इसी कारण अपने "पेटेंट" भोंपूधारी रखे हुए है, जो सिर्फ "आम काटकर खाना है, या चूसकर" जैसे प्रश्नों से ज्यादा आगे ही नहीं बढ़ते।
सेनापति---् पर महाराज, मैं जो खबर लाया हूं, वो खबर अच्छी नहीं है। राज्य के उड़ीसा हिस्से में ट्रेनों की भिड़ंत हो गई, जिसमें कई लोग मारे गये है, और बहुत से जख्मी हालत में है।
राजा मंगलू खिसियाकर-- तो क्या वो मेरे लिए "मरे" है ?
अरे बोर्डर पर जब किसान "मरे" थे, तब भी मेरा यहीं जबाव था।
सेनापति ----पर महाराज, विपक्षी गुट इस सभी का ज़िम्मेदार आपको ठहरा रहा है, कह रहा है, कि नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दो ।
राजा मंगलू--विपक्ष हमेशा ऐसी चीजों की मांग क्यों करता है, जिसका मेरे "बचपन से भी कोई नाता" ही नहीं है।
तुम्हारी बातों से हम दुखी हुए। इसलिए इस "आपदा के अवसर" पर पूरे राज्य में ऐलान किया जाये, कि हम इस दुख की बेला अगले एक सप्ताह तक दरबार का कोई काम न कर सकेंगें। लिहाजा दरबार की कार्यवाही यहीं समाप्त की जाये।
अपने दुख को मिटाने के लिए राजा मंगलू नृत्य कलां में खोया हुआ था।
महल-- "इन्हीं लोगों ने ले लीना...., हमरी न मानो, सिपहिया से पूछो" --"भजन " से गुंजायमान था। राजा मंगलू, "लोकतंत्र" के इस अवसर पर "राजतंत्र" के साक्षात् दर्शन कर रहा था।
--- सेनापति --(हांफते हुए)---जहांपनाह का.... इकबाल.... बुलन्द.... हो..।
----- राजा मंगलू (घबड़ाते हुए) --क्या हुआ सेनापति ? कोई पत्रकार है पीछे ?
सेनापति -- नहीं ......महाराज।
राजा मंगलू ---मैं तो डर ही गया । सच्चे पत्रकार को देखते ही हमारा हाजमा खराब हो जाता है। देखों, हमारी एक मंत्री, जैसे-तैसे प्रश्नों से भागकर आई है। जाने क्या पूछ लिया उसने, जबसे भागकर आई है, रह-रहकर, मूर्छा नहीं टूट रहीं।
मैंने इसी कारण अपने "पेटेंट" भोंपूधारी रखे हुए है, जो सिर्फ "आम काटकर खाना है, या चूसकर" जैसे प्रश्नों से ज्यादा आगे ही नहीं बढ़ते।
सेनापति---् पर महाराज, मैं जो खबर लाया हूं, वो खबर अच्छी नहीं है। राज्य के उड़ीसा हिस्से में ट्रेनों की भिड़ंत हो गई, जिसमें कई लोग मारे गये है, और बहुत से जख्मी हालत में है।
राजा मंगलू खिसियाकर-- तो क्या वो मेरे लिए "मरे" है ?
अरे बोर्डर पर जब किसान "मरे" थे, तब भी मेरा यहीं जबाव था।
सेनापति ----पर महाराज, विपक्षी गुट इस सभी का ज़िम्मेदार आपको ठहरा रहा है, कह रहा है, कि नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दो ।
राजा मंगलू--विपक्ष हमेशा ऐसी चीजों की मांग क्यों करता है, जिसका मेरे "बचपन से भी कोई नाता" ही नहीं है।
तुम्हारी बातों से हम दुखी हुए। इसलिए इस "आपदा के अवसर" पर पूरे राज्य में ऐलान किया जाये, कि हम इस दुख की बेला अगले एक सप्ताह तक दरबार का कोई काम न कर सकेंगें। लिहाजा दरबार की कार्यवाही यहीं समाप्त की जाये।
अपने दुख को मिटाने के लिए राजा मंगलू नृत्य कलां में खोया हुआ था।
महल-- "इन्हीं लोगों ने ले लीना...., हमरी न मानो, सिपहिया से पूछो" --"भजन " से गुंजायमान था। राजा मंगलू, "लोकतंत्र" के इस अवसर पर "राजतंत्र" के साक्षात् दर्शन कर रहा था।
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