Pages

Wednesday, June 7, 2023

Flattery (चापलूसी)


King Manglu in the palace, sitting on the throne, sucking the sugarcane and tossing it to one side, there was a competition among the courtiers of the kingdom to catch him.  The courtier who got it, he was accepting it as a prasad.  Seeing all this, Raja Manglu's heart was getting elated.  The flattery of all the "inefficient ministers" of the state was on their "shabab".

That's why, sitting next to him, the Home Minister mumbled in the king's ear ---- Maharaj, don't you think that you have created an army of "incompetent ministers" in your court?

Raja Manglu ----Home Minister, will you keep him "incompetent" just like that, only then my "image" will become "working" among the public?  That's why I personally go to wave the signal flag of the train.

Home Minister ---- but what will be the benefit of this, Maharaj?

Raja Manglu --- Profit..... Oh you will get only profit.
No one in the state knows him except me.  It's like a "butchered bird".  Such people always depend on others.  That's why now he is forced to live the life of my slavery.  They have no choice but to play my trumpet.

Home Minister ----- Wow Maharaj, wow.  Outside, your meanness acts are well known, but there is no shortage of meanness even inside.
Raja Manglu --- Home Minister, the shoes of the feet remain fine in the feet only.

By saying this, both Raja Manglu and the Home Minister laughed out loud.  The courtiers of the kingdom, without knowing it, started laughing to support King Manglu.  And the king was characterizing Manglu's thinking.


हिन्दी रुपांतरण

राजा मंगलू महल में, सिंहासन पर बैठा, गन्ना चूसकर  एक तरफ उछाल रहा था, राज्य के दरबारियों में उसे कैच करने की होड़ सी मची थी।  जिस दरबारी को मिल जाता, वह उसे प्रसाद समझ कर ग्रहण कर रहा था।  ये सब देख राजा मंगलू मन ही मन प्रफुल्लित हो रहा था।   राज्य के सभी  "नाकारा मंत्रियों" की चापलूसी अपने "शबाब" पर थी।

           तभी बगल में बैठे, मुंह लगे गृहमंत्री ने राजा के कान में बुदबुदाया----महाराज, आपको नहीं लगता, कि आपने अपने दरबार में  "नाकारा मंत्रियों " फौज खड़ी कर ली है?

राजा मंगलू ----गृहमंत्रीजी,  इन्हें यों ही   "नाकारा" बनाये रखेगें, तभी तो जनता के बीच मेरी "छवि" "कामकाजी"  की बनेगी ?  इसलिए मैं रेल के सिंग्नल की झंडी भी खुद हिलाने जाता हूं। 

गृहमंत्री----पर इससे क्या लाभ मिलेगा महाराज ?

राजा मंगलू ---लाभ .....अरे लाभ ही लाभ मिलेगा ।
   राज्य में मेरे अलावा इन्हें कोई जानता भी नहीं है।  ये  "पर कटे पंक्षी" की तरह  है।  ऐसे लोग सदा दूसरों पर आश्रित रहते है।  इसलिए अब ये मेरी गुलामी का जीवन जीने को मजबूर है। इनके पास मेरी तूतनी बजाने के अलावा कोई चारा भी नहीं है।

  गृहमंत्री-----वाह महाराज, वाह।   बाहर तो आपकी नीचता की हरकतें जगजाहिर रहती ही है, पर अंदरखाने में भी नीचता में कोई कमी नहीं रखते।
राजा मंगलू---गृहमंत्रीजी, पांव की जूतीं पांव में ही ठीक रहती है। 

          इतना कहकर राजा मंगलू व गृहमंत्री दोनों जोर-जोर से हंस पड़े।  राज्य के दरबारियों ने बिना जाने,  राजा मंगलू का साथ देने के लिए ठहाके लगाने शुरू कर दिये।  और राजा मंगलू की सोच को चरित्रार्थ कर रहे थे। 

No comments:

Post a Comment